________________
वे
प्रभु
(यज्ञ- याक्षिणी) अलग स्थापित तो उनका अभिषेक अलग करना चाहिए।
के ही अंग के रूप में स्वीकार्य है
1
* अंगलुंछणा *
१. तीन अंगलुंछणा रखना आवश्यक है। अंगलुंछणा थाली में रखने चाहिए।
२. अंगलुंछणा रोजाना धोने चाहिए। ३. अलग डोरी पर सुखाने चाहिए। ४. नीचे गिर जाय तो नए लेने चाहिए। ५. प्रत्येक व्यक्ति अपने-अपने घर से मलमल के अंगलुंछणा लाये तो बहुत ही लाभ मिलता है। ६. पहला मोटा, दूसरा उससे पतला, तीसरा एकदम पतला कपड़ा, अंगलुंछणा हेतु होना चाहिए । अगर पानी रह जाता है, तो जीवों की उत्पत्ति हो सकती है, प्रतिमाजी काले पड़ जाते हैं, इसलिए भगवान एवं परिकर एकदम कोरे करना जरूरी हैं। जरूरत पड़े तो तांबे की सली का उपयोग भी कर सकते हैं ।
गुड नाईट - 52
Jain Education internation Slor Personal & Private - Onlwww.jainelibrary.org