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के नाक और मुँह घिस गये हैं। यह घोर आशातना हैं, अत: वालाकुंची न वापरे, यही अच्छा है।
अभिषेक जल आँखों पर लगाकर उन्हीं हाथों से पूजा करना योग्य नहीं है। बाहर आकर हाथ धोने पड़ते हैं । अभिषेक जल के पात्र में हाथ नहीं धोने चाहिए। धोने से दोष लगता है ।
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अभिषेक जल का निकास : ऐसी जगह पर करना चाहिए, जहाँ पाँवों में नहीं आवे, जल्दी सूख जाय, जीव जंतु की उत्पत्ति न हो, इसका विशेष ध्यान रखना चाहिए ।
मुद्रा : कलश को दोनों हाथों में लेकर सहज नमाना इसको समर्पण मुद्रा कहते हैं । "हे भगवान्! संसार वृक्ष के तीन मूल हैं। अग्नि, स्त्री और सचित्त जल । अग्नि और स्त्री छोड़ सकते हैं। सचित्त जल रूपी संसार के प्रतीक को आपके चरणों में अर्पित करता हूँ।” पहले देव बाद में गुरू उसके पश्चात् देव-देवी, परिकर में रहे हए सभी का अभिषेक प्रभ के साथ ही कर सकते हैं। गुड नाईट - 51
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