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के दर्शन करने वाले को लक्ष्मी की प्राप्ति होती है और हथेली के मध्यभाग के दर्शन करने से सरस्वती-विद्या की प्राप्ति होती है। अपने महापुरूषों ने “एक पंथ दो काज'' का गणित लगाते हुए यह भी लाभ हो जाय एवं मोक्ष का लक्ष्य ही मन में रहे तदर्थ हथेली में सिद्धशिला के दर्शन करने का विधान किया ।
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प्रात:काल का चिन्तन: आचारांगादि आगमसूत्र अनुसार प्रतिदिन प्रातः ऐसा सोचना चाहिये "कहं में आगओ ? पुव्वाओ ?” मैं कहाँ से आया हूँ? किस दिशा से आया हूँ? मेरा क्या कर्तव्य है? मैं कहाँ जाऊँगा? मुझे कैसा दुर्लभ और उत्तम जिनशासनं मिला है? मेरे देव गुरू और धर्म कितने महान् है ! यह मानवजन्म मुनि बनकर मोक्ष में जाने के लिये है । संयम न मिले तब तक मुझे अपना जीवन कैसा बनाने का है? प्रतिज्ञा बिना का जीवन पशुतुल्य है। नियम तो लगाम है, अंकुश है। वह हाथी-घोड़े पर लगता है, गधे पर नहीं। मैंने कौन-कौन सी प्रतिज्ञायें ली हैं? मुझे मोक्ष मार्ग किस उपकारी गुरूदेव ने बताया ? किसने
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गुड नाईट - 12
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