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विशल्या द्वारा शक्ति से घायल लक्ष्मण को स्वस्थ करना
ज्योहि विशल्या ने लक्ष्मण को अपने हाथ से स्पर्श किया, दीजिये।" उसे छोडते ही वह अदृश्य हो गयी। विशल्याने लक्ष्मण को त्योंहि अमोघविजया शक्ति ने लक्ष्मण के शरीर को छोड दिया। इतने दूसरी बार स्पर्श किया। इसके पश्चात् गोशीर्ष चंदन आदि से विलेपन में हनुमानजी ने उसे पकडा, तब उसने कहा, "मैं प्रज्ञप्ति महाविद्या किया। लक्ष्मणजी के शरीर पर जितने घाव हुए थे, वे सब भर गए और की भगिनी हूँ। धरणेन्द्र ने मुझे रावण को सौंपा था। मुझे रामलक्ष्मण के लक्ष्मण इस तरह उठे जैसे अभी अभी निद्रात्याग किया हो। रामचंद्रजी साथ कोई वैर नहीं है। जिस व्यक्ति पर मुझे छोडा हो, उसे मृत्यु के ने उन्हें गले से लगाया और विशल्या की संपूर्ण हकीकत कही। विशल्या नगरी में पहुँचाना मेरा काम है। मैं अपना काम यथायोग्य कर रही थी, का स्नानजल लक्ष्मण एवं समस्त घायल सैनिकों पर छीटंका गया। परंतु विशल्या के तपःशक्ति-सामर्थ्य को सहने की शक्ति मुझ में नहीं रामचंद्र की आज्ञानुसार एकसहस्र कन्याओं के साथ लक्ष्मण का विवाह है। अतः मैं लक्ष्मण का शरीर छोडकर जा रही हूँ। मुझे जाने विशल्या के साथ संपन्न हुआ।
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बहुरूपी रावण की लक्ष्मण द्वारा मृत्यु
की अनुज्ञा देंगे, तो मैं आपको मेरा आधा साम्राज्य एवं तीन सौ कन्याएँ दूंगा।"
दूसरे दिन महायोद्धा लक्ष्मण को युद्धभूमि में देखकर चिंतित रावण बोला, "अब मैं कुंभकर्णादि वीरों को कैसे मुक्त करवा सकूँगा ?" रावण के मंत्रियों ने कहा- “स्वामिन् ! अब सीताजी की मुक्ति के अलावा कोई अन्य विकल्प हमारे पास नहीं है। अन्यथा आपके सहोदर कुंभकर्ण एवं आत्मज युवराज इंद्रजित की मुक्ति असंभव है। यदि आप राम का अनुसरण नहीं करेंगे, तो कुल का विनाश निश्चित है।" रावण ने उनकी अवज्ञा कर सामन्त नामक एक दूत को रामचंद्रजी के पास भेजा। दूत को साम, दाम, दंड, भेद नीतिओं के अनुसरण का आदेश दिया गया था। दूत ने राम को प्रणाम कर मधुरवाणी में कहा, "मैं सामन्त, लंकाधिपति रावण का दूत हूँ। मेरे स्वामी ने कहलवाया है कि यदि आप मेरे कुलजनों को मुक्त करेंगे व सीता को मेरे पास रहने
रामचंद्र ने कहा, “अरे मुढ ! न मुझे रावण के आधे साम्राज्य में रस है, न तीन सौ कन्याओं में, यदि आपके स्वामी मेरी पत्नी सती सीता को मुक्त करते हैं, तो मैं उनके कुलजनों को मुक्त करुंगा।" दूत ने कहा, “एक स्त्री के लिए आप इतना बडा साहस क्यों कर रहे हैं? अमोघविजया शक्ति से लक्ष्मण अपने सौभाग्य के कारण ही जीवित बचे हैं। मेरे स्वामी के पास ऐसी अमोघविजया जैसी अनंत शक्तियाँ हैं। क्या आप अपने अनुज लक्ष्मण की बलि पुनः मृत्युदेव को चढाने के लिए उत्सुक है ?" लक्ष्मण ने क्रोधपूर्वक कहा, "क्या आपके
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