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________________ 68 05 MER रावण और लक्ष्मण का युद्ध सीता भी इस दुर्घटना का समाचार मिलते बेहोश हो गई। जल छींटकने पर वे होश में आकर विलाप करने लगी। इतने में अवलोकिनी विद्या के एक ज्ञाता ने सीता को यह कहकर आश्वस्त बनाया कि, “कल प्रातः लक्ष्मण पुनः स्वस्थ हो जाएंगे।" विभीषण के शरीर में यह शक्ति सहने का सामर्थ्य नहीं था। अतः राम ने लक्ष्मण से कहा, "हे अनुज ! अपना आश्रित बिभीषण इस अमोघविजया शक्ति के प्रयोग से मारा जा रहा है, सत्वर जाकर उसकी रक्षा करो।" लक्ष्मण त्वरित रावण से युद्ध करने के लिए खडे हो गए । रावण ने उनसे कहा, "मैंने यह शक्ति तुम्हें मारने के लिए ग्रहण नहीं की है, किंतु राजद्रोही, वंशद्रोही, मातृभूमिद्रोही विभीषण का वध करने के लिए ग्रहण की है। यदि तुम उसकी रक्षा करना चाहते हो, अथवा उसके लिए प्राणत्याग करना चाहते हो, तो तुम्हें मरना ही इष्ट होगा।" रावण ने इस प्रकार लक्ष्मण के मन में भय निर्माण का यत्न किया, परंतु लक्ष्मण अपने निश्चय पर अड़ग रहे। अंत में रावण ने वह चंडशक्ति लक्ष्मण पर छोड दी। भामंडल, सुग्रीव, नल, नील, हनुमान व अन्य सुभटों ने अपने अस्त्रोंद्वारा उस शक्ति को छेदने के लिए प्रयास किये, किंतु वे सब निष्फल रहे और उस शक्ति ने लक्ष्मण के वक्ष पर प्रहार किया। तत्काल लक्ष्मण मूर्छित हो गए। यहाँ बिभीषण ने राम से कहा कि, “इस शक्तिद्वारा ताडित मनुष्य प्रायः एक रात्रि तक ही जीवित रह सकता है। अतः प्रतिघात के लिये मंत्र, तंत्रादि का प्रयोग आवश्यक हैं।" इतने में कोई रामसैनिक, एक विद्याधर को लक्ष्मण के समीप लाया। उस विद्याधर ने कहा, "मेरा अनुभव यह है कि भरत के मातुल द्रोणमेघ की पुत्री विशल्या के स्नानजल से यह शक्ति अवश्य नष्ट हो जाएगी, क्योंकि उसने पूर्वजन्म में कठोर तप किया था।" यह सुनते ही रामचंद्र ने भामंडल, हनुमान एवं अंगद को अयोध्या जाकर भरत के साथ द्रोणमेघ की राजधानी कौतुकमंगल नगर जाने का आदेश दिया। रामचंद्र की आज्ञा के अनुसार वे अयोध्या पहुँचे । भरत उन्हें लेकर कौतुकमंगल आए व द्रोणमेघ से अनुरोध किया कि वे अपनी पुत्री विशल्या को उनके साथ लंका जाने की अनुमति दें। द्रोणमेघ से किसी नैमित्तिक ने कहा था कि विशल्या का विवाह दशरथपुत्र लक्ष्मण के साथ होगा। इसलिए उन्होंने सत्वर विशल्या को उनके साथ जाने की अनुमति दी। श्री रामचंद्रजी के सुभट फिर अयोध्या गए। वहाँ भरत को छोड़कर वे राम के पास आए। क्रोधित राम ने रावण पर आक्रमण किया व पाँच बार उसे रथहीन बना दिया। रावण ने सोचा- उस अमोघशक्ति के प्रहार से लक्ष्मण तो जी नहीं पाएँगे और अपने अनुज की मृत्यु से विह्वल राम उसी रात्रि, प्राणत्याग करेंगे। अतः युद्ध करने का अब कोई प्रयोजन नहीं है। इतने में सूर्यास्त हुआ और रावण पुनः लंका लौटा। युद्धभूमि से राम अपने छावनी में लौटे। भूमि पर पड़े लक्ष्मण को देखकर राम स्वयं बेहोश हो गये। सुग्रीव आदि सुभटों ने ज्योंही जल छींटका, राम होश में आये व विलाप करने लगे। वहाँ लंका में Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004226
Book TitleJain Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunratnasuri
PublisherJingun Aradhak Trust
Publication Year2002
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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