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अनैतिकता, असदाचार के विरोध में आवश्यक्तानुसार युद्ध का संदेश देने वाले जैनसिद्धान्त का यह पहलु, रामायण में प्रकट रूप से दिखता है।
प. पू. संघदास गणि म. सा. रचित "वासुदेव हिण्डी" प्राचीनतम रामायण ग्रंथ है, परंतु प. पू. आ. विमलसूरिजी लिखित “पउमचरियं" सब से ज्यादा विख्यात है। प. पू. गुणभद्र म.सा. लिखित 'उत्तरपुराण' तथा प. पू. भद्रेश्वर म. सा. लिखित 'कथावली' भी जैन रामायण ग्रंथ है। प. पू. रविसेन म. सा. द्वारा लिखित 'पद्मपुराण', प. पू. स्वयंभू म. सा. का 'महापुराण' प. पू. कृष्णदास म, सा. का 'पुण्यचंद्रोदयपुराण', प. पू. धनेश्वर सूरीश्वरजी म. सा. का
'शत्रुजयमहात्म्य', प. पू. शिलाचार्य म. सा. का 'चोवन्न महापुरूष चरियं', व प. पू. आ. हेमचंद्राचार्यसूरिजी म. सा. का 'त्रिषष्ठीशलाकापुरुषचरित्रं' व अन्य उपलब्ध पुस्तकों के आधार पर प्रस्तुत पुस्तक निर्माण की गई है। मैं इन सभी का आभारी हूँ।
इस ग्रन्थ का वांचन, अध्ययन से आधुनिक युग में क्या लाभ हो सकता है ? सब से पहले, आज का जनजीवन पाश्चात्य संस्कृति का अंधानुकरण कर रहा है। समस्त विश्व भर में एक कृत्रिम उपभोक्तावाद पर आधारित पाश्चात्य संस्कृति का निर्माण हो रहा है। त्याग, भ्रातृप्रेम, पातिव्रत्य जैसे सनातन मूल्यों को ठुकराकर, व्यक्ति को स्वार्थकेंद्रित बनाने का प्रत्यक्ष संदेश, आज फिल्में एवं टी. वी. के कार्यक्रम दे रहे हैं। ऐसी विकट परिस्थिति में हमारा मार्गदर्शक बन सकता है, 'जैन रामायण'। जिसमें, आर्य संस्कृति के मार्गानुसारी गुणों की तलहटी से लेकर, लोग संयम के सोपान द्वारा मोक्ष के अधिकारी बन सकते है।
हमारे आर्य व श्रमण संस्कृति की गरिमा गाने वाले इस ग्रंथ में हमें, व्यक्तिगत तनावपूर्ण क्षणों में योग्य निर्णय लेने हेतु सहायता मिलती है। रामायण के हर पात्र का भाषण, संभाषण, मौन, क्रिया, प्रक्रिया, व धर्मसाधना हमारे लिये बोधकारी बनती है। रामायण में विमान स्थापत्यशास्त्र, एवं शस्त्रास्त्रों का उल्लेख मिलता है, जिसमें राजा मधु के पास चरमेन्द्रद्वारा दिया गया प्रक्षेपास्त्र भी शामिल है, जो कि करीब तेरह सहस्र कि. मी. की दूरी तक जाकर प्रहारकर पुनः अपने स्वामी के पास लौट आता। इन्ही ग्रन्थों के अभ्यासद्वारा विदेशी वैज्ञानिकों ने अनेक अन्वेषण किये हैं।
रामायण का अध्ययन हमें हमारे बढ़ते हुए निजी तनाव एवं सामाजिक तनाव से लोहा लने के लिये प्रेरणा देता है। सीता के विरह अग्नि में जलते हुए राम, अपने दुःख को भूलकर जटायु व वज्रकर्ण आदि की सहायता करते हैं। आज, जब हमारे निजी एवं सामाजिक संबंध शनैः शनैः अर्थविहीन बने जा रहे हैं, तब रामायण ही उन्हें दोबारा नया अर्थ प्रदान कर सकता है। इसके व्यक्तिगत, पारिवारिक, राजनैतिक, सामाजिक, धार्मिक आदि कोई भी संदर्भ सदा के लिये चिरंजिवी है- सर्वत्र निरवद्य मार्गदर्शक, प्रेरक हैं, थे व रहेंगे। रामायण ने हमें, जो गौरवशाली धरोहर दी है, उसे न आक्रमण छीन सकते है और न ही क्रूर नियम छीन सकते है, क्योंकि वह हमारे रक्त प्रवाह में बहती है व हमारे हृदयों में संपादित है।
भिन्न-भिन्न रामायण में आती हुई भिन्न-भिन्न घटनाएँ : भिन्न भिन्न लेखकों द्वारा रामायण का आलेखन अलग अलग रीति से किया गया है। उसमें मतमतान्तर को महत्त्व न देकर उसमें बताये गए आदर्श व जीवनोपयोगी मार्ग को स्वीकारना चाहिए। जैसे कि एक रामायणकार ने कहा कि लंका की अशोक वाटिका में सीताजी ने सफेद पुष्प देखे थे, दूसरे ने कहा कि लाल पुष्प देखे थे। उसके विवाद में यानी सफेद या लाल पुष्प के विवाद में न पड़कर उस
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