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________________ दोलायमान हो सकती है। रामचंद्रजी को जागृत करने का कार्य जो जटायु व कृतान्तवदन देवों ने किया था, शायद कार्य हमारे लिये प्रस्तुत ग्रंथ कर सकता है। युवावर्ग, इस ग्रन्थ में छलकते वीररस व वैराग्य इस से प्रेरणा पा सकते है। पाप कार्य करने वाले रावण को रोकने के लिये, रामचंद्रजी व लक्ष्मणजी हिचकिचाये नहीं। आज का काल रामायण से विशेष भिन्न नहीं है। पापी व अधम मनोदशा रखने वाले व्यक्ति को रोकने व सदाचार की रक्षा के लिए प्रयत्न करना चाहिये। रामायण में पुत्रप्रेम व भ्रातृप्रेम का उत्युच्च आविष्कार पाया जाता है। राम-लक्ष्मण भरतशत्रुघ्न के मधुर संबन्ध, आदर्शतम मार्गानुसारी गुण है। इन आदर्शपुत्रों का अपने माता-पिता के प्रति रवैया देखकर, हम आश्चर्यचकित हो जाते है। राम ने सारा षड्यन्त्र रचने वाली कैकेयी को भी वनवास जाते व वापस लौटते वक्त प्रणाम किया है। वे मानते की सौतेली होते हुए भी कैकेयी माँ ही है। पिता की दीक्षा निर्विघ्नता पूर्वक हो, इसलिए राम स्वयं वनवास स्वीकारते हैं व भ्रातृभक्त लक्ष्मण उन्हें अनुसरते है इच्छा नहीं होते हुए भी प्रदीर्घ समय तक भ्रातृराम के आदेश से भरत ने राज्य का पदभार संभाला। एक तरफ राम के लिये राजप्रासाद व राजवैभव का त्याग करनेवाली सीताजी है, तो दूसरी ओर सीताजी के प्रति एकतरफ प्रेम रखने वाले अपने पति का प्रेम प्रस्ताव लेकर सीता के समक्ष आनेवाली सती मंदोदरी है। पति द्वारा देशनिकाला मिलने पर भी सीताजी, उन्हें दोषी नहीं मानती व केवल राम के लिये नहीं, अपितु समस्त मानवसमाज के लिये उपयुक्त, ऐसा चिरंतन सत्य संदेश, राम के लिये भिजवाती है। केवल पति की इच्छा के लिये अग्निदिव्य करने के लिये सती सीताजी, संसार की क्षणभंगुरता से भलीभाँति परिचित थी । अतः अग्निदिव्य के पश्चात् पुनः सम्राज्ञी बनने के विकल्प को ठुकराकर शांतिदायी, ज्ञानदायी व मोक्षदायी दीक्षामार्ग का ही चयन करती है। Jain Education International राम को वनवास की अनुमति देते कौशल्या को जो दुःख हुआ था, उससे कई गुणा अधिक सीता को अनुमति देते समय हुआ। वह हमारे सामने आदर्श सासु का मिसाल देती है रामायण के पात्रों के जीवनद्वारा अपने लिये नये ध्येय व आदशों की निर्मिति का कार्य पिढी कर सकती है। युवा बालकों के लिये आकाशगामी विद्याधर, सीतादिव्य, कृत्रिमाकृत्रिम सुग्रीव, जटायु देव, अतुल शक्तिशाली एवं विनम्र हनुमान, चमत्कारों के सर्जक विविध देव आदि अद्भुत पात्र आकर्षक बनाते है। 'बहुरत्न वसुंधरा' के प्रति इनका क्या ऋणानुबंध है कि जो देवलोक के विभिन्न स्तरों से जटायु आदि देव पृथ्वी की ओर खिंच आते है। रामायण के प्रत्येक पात्र पर एक ग्रंथ लिखा जा सकता है। कई बुद्धिजीवी विद्वमानी जीवों का कहना है कि जैन सिद्धांतों में अहिंसा को अनावश्यक महत्व दिया गया है। अतः जैन क्षत्रिय, अपने धर्मसिद्धांतों को स्वीकारकर, धीरे-धीरे क्षात्र धर्म से दूर जा रहे है। किंतु उनकी धारणा गलत है। क्योंकि राम-लक्ष्मण, सीता के शीलधर्म की रक्षा के लिये अपराधी रावण के विरूद्ध युद्ध करते हैं। अन्याय, For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004226
Book TitleJain Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunratnasuri
PublisherJingun Aradhak Trust
Publication Year2002
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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