________________
प्रस्तावना
पिछली कई सदियों से भारत ही नहीं, अपितु संपूर्ण विश्व के जन सामान्य के हृदय पर जितना प्रभाव रामायण और महाभारत का रहा है, उतना किसी अन्य ग्रन्थ का नहीं रहा। भारतीय व्यक्ति, फिर वह चाहे किसी भी प्रांत का हो, किसी भी धर्मसंप्रदाय से जुडा हो, शहरी हो या ग्रामीण, सुशिक्षित हो या अशिक्षित, वह रामायण से परिचित तो होता ही है। रामायण ने हमारे अभिजात साहित्य आदि को अत्यंत प्रभावित किया है। विद्वानों का कहना है कि वाल्मिकी रामायण के पूर्व भी अनेक रामकथाएँ प्रचलित थी, जिन्हें मौखिक परंपराओं ने जीवित रखा था। वाल्मिकी रामायण की भी अनेक प्रतिभाशालियों ने अपनी बुद्धि के अनुसार कुछ न कुछ नयी विवेचना की है। इस
योगदान ने रामायण को और भी रोचक बनाया है। वाल्मिकी के साथ साथ तुलसीरामायण (वज्रभाषा), दुर्गावर कृत मीती रामायण (बंगाली), दिवाकर भट्ट कृत रामायण (काश्मीरी), एकनाथ कृत भावार्थ रामायण (मराठी), कंपनकृत पंपारामायण (कन्नड), आदि कुछ ऐसे ग्रंथ है, जो प्रांतीय भाषा में लिखे है। इनका अंतरंग, बहुतांश वाल्मिकी रामायण के साथ साधर्म्य रखता है, किंतु बहिरंग में उनके कर्ताओं की प्रतिभाशक्ति के अनगिनत आविष्कार का अनुभव किया जा सकता है।
भारत में युग-युग से चली आ रही मौलिक जैन संस्कृति ने आर्य संस्कृति को एक नया, अनोखा योगदान दिया है। अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह
एकनया, लाजा की आग्रही जैन संस्कृति (धर्म), भारत व कुछ पडोसी देशों में पायी जाती है। जैन संस्कृति ने भी रामायण को अनन्यसाधारण महत्त्व दिया है।
जैन रामायण : करीब पौने बारह लाख वर्ष पूर्व, भगवान मुनिसुव्रत स्वामी हुए। उनकी परंपरा में सुव्रत मुनि हुए, जिनके सानिध्य में रामचंद्रजी ने साधना की। शरीर व आयुष्य की गणना के आधार पर करीब पौने बारह लाख वर्ष पूर्व, राम, लक्ष्मण, सीता आदि हुए हैं, ऐसा कई विद्वानों का अभिप्राय है। पश्चात् केवलज्ञानी भगवान महावीरस्वामी ने अपने केवलज्ञान द्वारा, इस रामायण की घटनाओं को जाना, जिसकी उनके शिष्य गणधर गौतमस्वामी आदि ने सूत्र के रूप में रचना की। उसके बाद परंपरा से यह जैन रामायण, आचार्य श्री विमलसूरि के पास पहुँचा। उन्होंने १९९५ वर्ष पहले, प्राकृत भाषा में गाथा (श्लोक) के रूप में 'पउमचरियं' की रचना की।
बहुतांश जैनेतर समाज व कुछ हद तक जैन बालक एवं युवा वर्ग, जैन रामायण से अपरिचित है। आजकल के गतिमान जीवन में संस्कृत-प्राकृत पुस्तकें पढ़ने के लिये किसी के पास समय नहीं है, अतः विद्वद्भोग्य ग्रंथ अथवा महाकाव्यों को पढ़ना असंभव होता जा रहा है। इसलिये हिन्दी, अंग्रेजी व गुजराती आदि भाषाओं में 'जैन रामायण' की आवश्यक्ता महसूस हुई।
जैन रामायण की विशेषता यह है कि वह किसी भी आयु के व्यक्ति को आकर्षित करता है। अधेड एवं वृद्धों को इसमें छलकता वैराग्य आकर्षित करता है। जीवन के अच्छे बुरे अनुभव लेने के पश्चात् जीवन पथ में अपने साथसाथ चलनेवाले अनेक सुहृद व सहचरों को मृत्युमुख में प्रवेश करते देखकर उनकी स्थिति भी रामचंद्रजी की तरह
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org