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प्रकाशकीय
आज तक प्राकृत - संस्कृत के अलावा हिन्दी, गुजराती आदि कई भाषाओं में रामायण कई बार छप चुके हैं। यद्यपि कुछ रंगीन चित्र व संपूर्ण श्याम-श्वेत चित्रों सहित जैन रामायण छपे हैं, परंतु आज के टी. वी. युग में पाठकों को चार रंग वाले चित्र ही रुचिकर बनते हैं। अंग्रेजी में कहा है कि 'ONE PICTURE IS MORE THAN THOUSAND WORDS - एक चित्र हज़ारो शब्दों से भी ज्यादा प्रभावित होता है। अतः दीक्षादानेश्वरी आचार्यदेवश्री गुणरत्नसूरीश्वरजी मा. सा. के दिल में १४ वर्ष पूर्व, यह विचार अंकुरित हुआ। जोधपुर, पाली, नागोर, जालोर, सिरोही आदि स्थानों पर हुए उनके, रामायण पर जाहेर प्रवचनों से काफी लोग प्रभावित हुए। अरे ! बीकानेर में अंजनासुंदरी व सीताजी आदि की घटनाएँ सुनते सुनते सोनी वगैरह जैनेतर लोग के भी आँखों से अश्रु बहाने लगे। अतः चित्रमय जैन रामायण बनाया जाए, तो प्रवचन में नहीं आनेवाले लोग भी इसका लाभ ले सकेंगे। रामायण की उपयोगिता, पूज्य आचार्यश्री ने प्रस्तावना में बतलाई ही है। १४ साल पहले जालोर के चातुर्मास में पूज्य आचार्यदेवश्री नेपाली निवासी आर्टिस्ट दिलीपभाई सोनी को मार्गदर्शन प्रदान कर चित्र बनवाने का कार्य प्रारंभ किया । चातुर्मास पश्चात् जहाँ कहीं स्थिरता होती, वहाँ आर्टिस्ट दिलीपभाई मार्गदर्शन प्राप्त कर चित्रकार्य आगे बढ़ाते। इस तरह चौदह वर्ष के बाद जिस तरह रामचन्द्रजी अयोध्या लौटे, उसी तरह चौदह साल पश्चात् यह रामायण, आपके समक्ष आ रहा है। पूज्य आचार्यदेवश्री को शासन के अनेक कार्य होते हुए भी चित्र, लेखन आदि तैयार करके हमारे ऊपर महान उपकार किया है। इसे भावी पीढ़ी कभी नहीं भूलेगी। इस कार्य में मुनिराजश्री वैराग्यरत्नविजयजी म. सा., मुनिश्री अर्हरत्नविजयजी म. सा. एवं प्रवर्तिनी साध्वीजी पुण्यरेखाश्रीजी म. सा. की शिष्या प्रशिष्या साध्वीजी निमेषरेखाश्रीजी, सा. रक्षितरेखाश्रीजी, सा. चिरागरेखाश्रीजी म. सा. एवं अन्य साधु-साध्वीजीयों का हार्दिक सहयोग रहा। इन सभी को वंदन करते हुए हम आभार मानते हैं।
इस जैन रामायण को प्रकाशित करने में मुख्य सौजन्य देनेवाले संरक्षक, उपसंरक्षक व श्रुतभक्तों ने अविस्मरणीय सहयोग दिया है, उन सबका व आर्टिस्ट दिलीपभाई सोनी का हम हार्दिक आभार मानते हैं।
मल्टी ग्राफीक्स ने छपाई में अद्भुत परिश्रम लिया है। उनको धन्यवाद देते हुए उनकी सेवा की अनुमोदना करते हैं। हमें विश्वास है कि यह पुस्तक, आपको अवश्य पसंद आएगी। आप अपने स्वजन, मित्र आदिको इसे पढ़ने की प्रेरणा करें।
- श्री जिनगुण आराधक ट्रस्ट
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