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________________ के लिए दो-चार मील पैदल चलें, तो क्या उसकी इस क्रिया को कायक्लेश तप कहना उचित है ? नहीं कहलाता। क्योंकि वे, मरण टालने का प्रयास कर रहे थे, जीवन जीने की लालसा एवं भविष्य में राजवैभव के पुनःप्राप्ति की इच्छा उनकें अंतर में जीवित थी। अतः उन्हें त्यागी नहीं कहा जाता। ज्वरपीडित व्यक्ति को वैद्यराजा या डाक्टर कईबार केवल मूंग का पानी अथवा सादा पानी ही पीने के लिए कहते हैं। इस प्रकार सभी आहार त्यागने वाले व्यक्ति को न तपस्वी कहा जाता है, न उसकी क्रिया को उपवास या तप कहा जाता है। यदि कोई व्यापारी लाभ पाने दशरथ राजा एवं जनकराजा वन में योगियों की भाँति विचरते तो थे, परंतु उनके मन में वैराग्यभाव नहीं था। हमारे कष्ट कब दूर होंगे और कब हमें राजसिंहासन पुनःप्राप्त होगा, ऐसे ही विचार उनके मन में आते थे। कैकेयी का स्वयंवर वन में विचरते विचरते वे दोनों उत्तरापथ में आए। वहाँ उन्हें ज्ञात हुआ कि कौतुकमंगल नगर में नरेश शुभमति एवं रानी पृथ्वीश्री की कन्या, जो युवराज द्रोणमेघ की बहन राजकुमारी कैकेयी है, उसका स्वयंवर रचाया जा रहा है। राजकुमारी कैकेयी न केवल सुंदर थी, अपितु विविध कलाओं में रुचि एवं नैपुण्य रखती थी। कैकेयी का स्वयंवर स्वयंवर में अनेक पुरुषों को आमंत्रित किया जाता है। उनमें से यथायोग्य वर का चयन, कन्या अपने इच्छानुसार करती है। उसी पुरुष के साथ कन्या का विवाह होता है। कैकेयी के स्वयंवर के लिए एक भव्य मंडप बनाया गया। हरिवाहन आदि अनेक शासक एवं राजकुमार स्वयंवर के लिए आमंत्रित किये गए। वे सब मंचपर क्रमशः अपनी अपनी योग्यता के अनुसार बिराजमान थे। दशरथ एवं जनक राजा दोनों को अपने योगीवेष के कारण अंतिमस्थान मिला। अतः वे दोनों वहीं पर बैठ गए। इसके पश्चात् उत्तमोत्तम वस्त्र एवं रत्नालंकारों से विभूषित लावण्यवती कैकेयी ने अपने कोमल हस्तों में वरमाला लेकर स्वयंवर मंडप में प्रवेश किया। उसके साथ-साथ एक दासी भी चल रही थी। कुछ ही देर में अपने लिए सुयोग्य पति का चयन करने वह मंडप में विहरने लगी। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004226
Book TitleJain Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunratnasuri
PublisherJingun Aradhak Trust
Publication Year2002
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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