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________________ मराक्षस वंश में जन्मे रावण प्रतिवासुदेव थे। उनकी राजसभा में एक नैमित्तिक बैठते थे। प्रतिवासुदेव राक्षस वंश में जन्मे हुए ज्ञानी एवं तत्ववेत्ता थे। एक दिन बातबात में रावण ने उस नैमित्तिक से कहा "संसारवर्ती सभी जीव मृत्यु के अधीन है। यद्यपि देव व्यवहार में अमर कहलाते हैं, परंतु अपनी समयमर्यादा पूर्ण होने के पश्चात् वे भी अवश्य मृत्यु पाते हैं । चराचर सृष्टि मृत्यु के लिए भक्ष्यसमान है। जातस्य धुवो मृत्युः । जन्म के बाद मृत्यु निश्चित है, परंतु जन्म वैकल्पिक है। जितने जीव जन्मते हैं, वे सभी मरण के शरण होते ही हैं, परंतु जो मरते हैं उन्हें जन्म लेना अनिवार्य नहीं। जो मरकर मोक्ष पाते हैं, वे जन्ममृत्यु की शृंखला से मुक्त हो जाते हैं। जो मोक्ष नहीं पाते, उनके लिए पुनर्भव अनिवार्य है। इस प्रकार जन्म पाने वाले सभी की मृत्यु निश्चित है। अतः आप मुझे बताएँ कि मेरी मृत्यु स्वपरिणाम से होगी अथवा किसी निमित्त से होगी?" रावण ने यह प्रश्न नैमित्तिक से कौतुकवशात किया था। उत्तर में नैमित्तिक ने कहा - कि "भविष्य में जन्म लेनेवाली जनकराजा की पुत्री एवं दशरथराजा के पुत्र के निमित्त से आप की मृत्यु निश्चित होगी।" * * राज्य सभा में बिभीषण का आक्रोश SEXK9 "MROIRTODAY AAMIN यह सुनते ही क्रोधावेश में बिभीषण उठा और उसने घोषणा की, "इस नैमित्तिक की भविष्यवाणी सदा सत्य ही होती है, किंतु मैं इस वाणी को झूठलाकर ही रहूंगा । दशरथ के पुत्र एवं जनक की पुत्री जन्म लें, इसके पूर्व ही मैं दशरथ और जनक दोनों की हत्या करुंगा। न रहेगा बांस और न बजेगी बांसुरी । इस प्रकार दोनों राजाओं की असमय मृत्यु होने से संतानजन्म होगा कैसे?" बिभीषण की बातें सुनकर बलशाली जीजिविषा रखनेवाले रावण ने अपने अनुज को प्रतिज्ञापूर्ति करने अनुमति दे दी। आवेश में आकर बिभीषण ने जब यह प्रतिज्ञा की, उस समय नारदजी राजसभा में उपस्थित थे। नारदजी यह उद्घोषणा सुनते ही सत्वर दशरथ से मिलने के लिए चल दिए। |卐 राक्षसवंश स्थापना, देखिये परिशिष्ट www.jainelibrary.org Edu PILIP SONI 0 00 Internet For Peso Private Use
SR No.004226
Book TitleJain Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunratnasuri
PublisherJingun Aradhak Trust
Publication Year2002
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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