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सत्वर दुतने अयोध्यानगरी जाकर अनरण्यराजा को अपने स्वामी के दीक्षा के समाचार देकर कहा कि "हमारे स्वामी कहते हैं कि हम दोनों ने साथ में ही दीक्षा लेने का प्रण किया था। अब मैंने तो दीक्षा ले ली है। अतः आपको भी इसके अनुरूप करना चाहिये।
लगे। “अब मुझे अपनी प्रतिज्ञा का पालन करना चाहिए।" उन्होंने अपने परिवार के समक्ष संयम ग्रहण की इच्छा व्यक्त की। युवराज अनन्तरथ के मन में पिता की बात सुनकर वैराग्य जगा । अतः उसने भी अपने पिता के साथ-साथ दीक्षाग्रहण करने का निर्णय ले लिया। ऐसे सुपुत्र बहुत कम होते हैं, जो पिता के उत्तम मार्ग का अनुसरण करने के लिए तत्पर हो।
समाचार सुनते ही अयोध्यापति राजा अनरण्य विचार करने
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बालक दशरथ का राज्याभिषेक
अनरण्य राजाने एक महीने की आयु धराते अपने शिशु दशरथ का राज्याभिषेक कराया एवं ज्येष्ठ पुत्र अनन्तरथ के साथ अभयसेन मुनि के पास दीक्षा ग्रहण की।
अब यह प्रश्न उपस्थित होता है कि क्या अपने परिवार एवं नन्हें बालकों को त्यागकर दीक्षा लेना उचित है ? हाँ, सर्वथैव उचित है। प्रत्येक व्यक्ति अपने कर्मों की गठरी साथ में ही लाता है, जिसमें पुण्य भी होता है और पाप भी। अतः मोहाधीन न होकर संयम में उद्यम करनेवाले पुण्यात्मा चारित्र लेने में विलंब नहीं करते। क्या पुत्र के शैशवकाल में पिता की मृत्यु नहीं होती? क्या पिता की मृत्यु के पश्चात् बालक बड़े नहीं होते? होते हैं। शिशु दशरथ देखते ही देखते
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