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________________ 51...कहीं सुनसान जाए दूसरे भव में अरुणदेव को शूली पर चढ़ना पड़ा और देवणी को कलाइयाँ कटवानी पड़ी। 11 चंद्रा और सर्गने क्रोध की आलोचना न ली... वर्धमान नगर में सुघड नाम का कुलपुत्र था। उसकी चन्द्रा नाम की पत्नी थी। उससे सर्ग नाम का पुत्र था। घर में दरिद्रता होने से दोनों जने मज़दूरी कर जीवन चलाते थे। युवावस्था में ही सुघड़ की मृत्यु हो गई। एक दिन चन्द्रा किसी के घर काम करने बाहर गई हुई थी। वहाँ कामकाज ज्यादा होने से आने में देरी हो गई। इतने में उसका पुत्र जंगल से लकड़ी का गट्ठर लेकर आया। चारों ओर देखने पर भी भोजन दिखाई नहीं दिया। जिससे वह अत्याकुल हो गया। इतने में काम पूर्ण करके भूख और प्यास से व्याकुल चन्द्रा आ रही थी। तब क्रोध से धधकते हुए सर्ग ने कहा कि-"क्या तू कहीं शूली पर चढ़ने गई थी? इतनी देर कहाँ लगी?" इतने कठोर और तिरस्कार पूर्ण शब्दों को सुनकर चंद्रा क्रोध से लाल-पीली होकर बोली - "क्या तेरी कलाई कट गई थी कि जिसके कारण तुझे सीके पर से भोजन लेने में जोर पड़ता था?" इस प्रकार के क्रोध मय वचनों को बोलकर आलोचना नहीं ली। शास्त्र में कहा हैं कि - "ते पुण मूढतणजे कत्थवि नालोइय कहवि" मूढ़ता के कारण उन्होंने आलोचना नहीं ली। काल करके अनुक्रम से सर्ग का जीव ताम्रलिप्त नगर में अरूणदेव नाम का श्रेष्ठीपुत्र बना और चन्द्रा का जीव पाटलीपुत्र में जसादित्य के यहां पुत्री के रूप में जन्म पाया । उसका नाम देवणी रखा गया। यौवन वय में योगानुयोग अरूणदेव और देवणी की परस्पर शादी हो गयी । कैसी विचित्र स्थिति है कर्म की? एक बार माता और पुत्र का संबंध था, अब वह मिटकर पति-पत्नी का संबंध हो गया। एक दिन अरुणदेव मित्र के साथ समुद्रपथ से जहाज में रवाना हुआ। परन्तु अशुभ कर्म के योग से जहाज टूट गया। सद्भाग्य से दोनों के एक लकड़ी का तख्ता मिल गया। उसके सहारे तैरते-तैरते वे दोनों किनारे पर आ गये। वहां से आगे चल कर पाटलीपुत्र नगर के पास पहुंचे। Jain Education Interational, For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004221
Book TitlePaschattap
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunratnasuri
PublisherJingun Aradhak Trust
Publication Year
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, C000, & C020
File Size18 MB
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