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35...कहीं सुना न जाए
करनी पड़ेगी। तब दोनों ने कहा कि हमें बजाना 6 मेतारज मुनि, नीचगोत्र और दुर्लमिबोधिता... नहीं आता और मुनि को कहा कि आपको मल्लयुद्ध
करना पड़ेगा। दोनों मुनि के साथ मल्लयुद्ध करने लगे। उज्जयिनी नगरी में मुनिचन्द्र नाम का राजा राज्य मल्लयद्ध करते-करते दोनों कुमारों के संधिस्थानों से करता था। उसका पुत्र और पुरोहित पुत्र सौवस्तिक दोनों हड्डियाँ उतार कर सागरचन्द्र मुनि वहाँ से चले गये। अत्यंत उच्छृखल हो गये। कोई भी साधु महाराज वहां आते, स्वस्थान पर जाकर काउस्सग्ग में खड़े रह गये। इधर दोनों तब वे उन्हें राजमहल में ले जाकर परेशान करते। हंटर मार कुमार वेदना से चीखने लगे। राजा ने सिपाहियों के द्वारा साधु कर नृत्य करवाते। श्रीसंघ ने राजा के पास जाकर शिकायत भगवंत की खोज करवाई। गांव के बाहर मुनि ध्यान में खड़े हैं, की, किंतु राजा ने उस पर ध्यान नहीं दिया। तब मुनियों ने ऐसा सिपाहियों ने कहा। तब राजा वहाँ गया। जाकर देखा, तो यह बात सागरचन्द्र मुनि से कही। यह सुनकर सागरचन्द्र खुद के सांसारिक भाई खड़े थे। राजा ने कहा कि "अरे गुरुदेव! मुनि को विचार आया कि यदि उज्जयिनी नगरी में मुनिराजों यह क्या किया?" मुनि ने राजा से कहा-"अरे राजन्! क्या अपने का विहार बंद हो गया, तो लोग धर्म से विमुख होकर दुर्गति कुल में मुनि को मारने का अन्याय हो सकता है? इतने दिनों तक में पड़ेंगे। अतः इसका कोई उपाय करना चाहिए। इस प्रकार तुमने संघ की बात स्वीकार नहीं की और अब पुत्र को ठीक करने के विचार करके वे उज्जयिनी आये । गोचरी के लिये राजदरबार लिए आज यहां विनती करने आए हो। राजन्! तूने ऐसे महामुनियों में गये। राजपुत्र और पुरोहितपुत्र ने नृत्य करने के लिए खूब का अपमान व विडंबना चला ली, तुमने यह बड़ी भारी भूल की है।" जबरदस्ती की और कहा कि बहुतों को चाबुक मारकर हम राजा ने कहा कि "गुरुदेव! ये कुमार बालक हैं। अतः इनका नृत्य करवा चुके हैं। इस प्रकार दोनों युवको ने धर्म की अपराध क्षमा कीजिए! पुनः ऐसा न होगा।" मुनि ने कहा किउपेक्षा की है। ऐसा जानकर उनको सुधारने के लिये "चारित्रधारी आत्माओं को सता कर इन्होंने भयंकर कर्म बांधे हैं। सागरचंद्र मुनि ने उनको कहा कि नाचने के लिये बजाने वाले अतः यदि ये दोनों चारित्र ग्रहण करें, तो दोनों की हड्डियाँ चाहिये और बजाने वाले भूल करेंगे, तो मेरा दिमाग चढ़ यथास्थान चढा दंगा, अन्यथा वे दोनों अपने किए हए पापों का जायेगा। उस समय जो सज़ा करूंगा, वह उन्हें स्वीकार... फल भुगतते रहे।"
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