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________________ शीलसन्नाह यह सुनकर ऊहापोह करने लगा। इतने । में तो विचार करते-करते उसे अवधिज्ञान उत्पन्न हुआ। ब्रह्मचर्य का प्रेम भी आत्मा को इतने उच्च स्थान पर पहुंचा। सकता है, तो जीवनभर ब्रह्मचर्य के साथ संयम पालूँ, तो कैसा अद्भुत उत्थान होगा? इत्यादि वैराग्यभाव में आकर उसने वहीं पर दीक्षा ले ली। शीलसन्नाह मुनि विहार करते-करते एक बार क्षितिप्रतिष्ठित नगर में आये। वहाँ रूक्मिणी वंदन करने आयी और उद्यान में देशना सुनी। देशना सुनने से उसके रोम-रोम वैराग्य से झनझनाने लगे। दिल रूपी बावड़ी में वैराग्यभाव का पानी उछलने लगा। उसने समग्र संसार का परित्याग कर चारित्र ग्रहण किया। Oube MOTION बहुत वर्षों के बाद शीलसन्नाह आचार्य हुए, उसके पश्चात् एक बार शीलसन्नाह आचार्य के पास रुक्मिर्णी साध्वी विहार करके आयी और कहने लगी कि, "मुझे अनशन करना है।" जब आचार्यश्री ने कहा कि अनशन करने से पहले आलोचना करके आत्मा को हल्का बनाना चाहिए। जिससे सद्गति और मोक्ष की प्राप्ति हो। उसने आलोचना कहनी शुरू की। अनेक प्रकार की हिंसा, असत्य, चोरी आदि की आलोचना कह दी। परंतु
SR No.004221
Book TitlePaschattap
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunratnasuri
PublisherJingun Aradhak Trust
Publication Year
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, C000, & C020
File Size18 MB
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