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________________ 19...कहीं मुना न जाए प्रायश्चित देने वाले गुरु कौन होते हैं ? आलोचना का प्रायश्चित देने वाले गुरु पांच व्यवहारों के जानकार होते हैं। १) आगम व्यवहारी :- अर्थात् केवलज्ञानी, मनःपर्यवज्ञानी, अवधिज्ञानी, १४, १०, ९ पूर्वी हो, उनके पास प्रायश्चित लेना चाहिए। २) श्रुत व्यवहारी :- आगम व्यवहारी का योग नहीं मिले, तो श्रुतव्यवहारी। यानि की आधे से लेकर ९ पूर्वी, ग्यारह अंग, निशीथ आदि के जानकार के पास प्रायश्चित लेना चाहिए। ३) आज्ञा व्यवहारी :- श्रुत व्यवहारी का योग नहीं मिले, तो दो गीतार्थ आचार्य मिल सके, ऐसा संभव न हो, तब सांकेतिक भाषा में अगीतार्थ साधु को समझाकर गीतार्थ आचार्यश्री के पास भेजें और वे गीतार्थ आचार्यश्री सांकेतिक भाषा में उसे जवाब दें। उसके पास प्रायश्चित लेना चाहिए। ४) धारणा व्यवहारी :- आज्ञा व्यवहारी नहीं मिले, तो गीतार्थ गुरू ने जो प्रायश्चित दिया हों, वह याद रखकर जो प्रायश्चित दें, उनके पास प्रायश्चित लेना चाहिए। ५) जित व्यवहारी :धारणा व्यवहारी नहीं मिले, तो जो गुरू सिद्धान्त में बताये हुये प्रायश्चित से, द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव को जानकर कम या अधिक प्रायश्चित देते। हों। वर्तमान काल में जित व्यवहारी स्वगच्छ के आचार्यश्री के पास साधु या श्रावक प्रायश्चित लें, यदि स्वगच्छ के आचार्यश्री नहीं मिले, तो स्वगच्छ के उपाध्यायश्री, प्रवर्तक, स्थविर या गणावच्छेदक के पास प्रायश्चित लेना चाहिए। यदि ऊपर कहे मुताबिक नहीं मिले, तो सांभोगिक अर्थात् जिसके साथ स्वगच्छ की सामाचारी मिलती हो, उन आचार्यादि पांच के पास प्रायश्चित लेना चाहिए। यदि वैसे आचार्यादि भी नहीं मिले, तो विषम समाचारी वाले आचार्यादि पांच के पास प्रायश्चित लेना चाहिए। उपर्युक्त कथन के अनुसार ७०० योजन एवं १२ वर्ष तक गीतार्थ गुरू नहीं मिले, तो फिर गीतार्थ पासत्था के पास प्रायश्चित ले । प्रायश्चित । लेने के लिए पासत्था को भी वंदन करने चाहिए, क्योंकि धर्म का मूल विनय है। यदि पासत्थादि स्वयं को गुणरहित मानें और वंदन नहीं करवाये, तो आसन पर बैठने की विनंति करके प्रणाम करके फिर आलोचना ले। यदि गीतार्थ पासत्थ आदि का संयोग नहीं मिले, तो गीतार्थ सारूपिक के पास आलोचना का प्रायश्चित ले। सारूपिक अर्थात् जो सफेद वस्त्र धारण करे, सिर पर मुंडन करवाये, धोती का कच्छ न बांधे, ओघा न रखे, पत्नी नहीं रखे, ब्रह्मचर्य का पालन करे, भिक्षा (गोचरी) से जीवन निर्वाह करे। यदि सारूपिक का योग नहीं मिले, तो सिद्धपुत्र पश्चात्कृत के पास आलोचना का प्रायश्चित लें। सिद्धपुत्र यानि कि सिर पर चोटी रखे और पत्नी सहित हों। चारित्र और साधु के वेष का त्याग करके गृहस्थ hamsion Internation.बना हो, वह पश्चात्कृत कहलाता है । उसको वेश पहनाकर ईत्वरिक सामायिक उच्चराकर विधिपूर्वक प्रायश्चित लेना चाहिए।
SR No.004221
Book TitlePaschattap
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunratnasuri
PublisherJingun Aradhak Trust
Publication Year
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, C000, & C020
File Size18 MB
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