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________________ 97. कहीं मुरझा जाए 3 नमो नमो खंधक महामुनि जितशत्रु राजा और धारिणी के पुत्र खंधक कुमार पूर्वभव में चीभड़ी की छाल निकालकर खुश हुआ था कि "कितनी सुंदर छाल उतारी है?" इस प्रकार छाल उतारने का कर्मबंध हो गया। उसके पश्चात् उसकी आलोचना नहीं ली। क्रम से राजकुमार खंधक बने। फिर धर्मघोष मुनि की देशना सुनकर राज्य-वैभव छोडकर संयम लिया राजकुमार में से खंधक मुनि बने । चारित्र लेने के पश्चात् बेले-तेले वगेरे कठोर तपश्चर्या कर काया को कृश दिया। एक दिन विहार करते-करते खंधक मुनि सांसारिक बहनबहनोई के गाँव में आये। राजमहल के झरोखे में बैठी हुई बहन की नज़र रास्ते पर चलते मुनि के ऊपर पड़ते ही विचार करने लगी, ''कहाँ गृहस्थावास में मेरे भाई की गुलाब-सी Jain Education Intemational काया और कहाँ आज तप के कारण झुर्रियाँ पड़ी हुई काले कोयले जैसी काया । अरे ! चलते-चलते हड्डियाँ खडखड़ाती हैं। इस प्रकार अतीत की सृष्टि में विचार करती हुई भावावेश में आकर वह जोर-जोर से रोने लगी। मुनि पर दृष्टि और रुदन देखकर पास में बै हुए राजा ने सोचा कि, "यह संन्यासी इसका पहले का कोई यार पुरुष होगा, अब उससे देहसुख नहीं मिलेगा, इसलिये रानी रो रही होगी । तप से कृश हुए शरीर के कारण अपना साला होते हुए भी राजा मुनि को पहचान न पाया और जल्लादों को कह दिया कि, जाओ... उस मुनि की जीते जी चमड़ी उतार कर ले आओ। जल्लादो ने मुनि को कहा कि "हमारे राजा की आज्ञा है कि आपके शरीर की चमड़ी उतारनी है। उन पर क्रोध न करके मुनि आत्म-स्वरुप का विचार करने लगे कि देह और कर्म से आत्मा भिन्न है। चमड़ी तो शरीर की उतारेंगे, इससे मेरे कर्मो की निर्जरा होगी, कर्मनिर्जरा करने का ऐसा अपूर्व अवसर फिर कब आयेगा ? इस प्रकार मन में सोचकर जल्लादों को कहा कि, "अरे भाई ! तपश्चर्या करने से मेरा शरीर खुरदरा हो गया है। इसलिये तुझे तकलीफ़ न हो, इस प्रकार मैं खड़ा रहूँ।" मुनि का कैसा उत्तम चिंतन ? अपनी तकलीफ़ का विचार न करके जल्लादों की तकलीफ़ का विचार करने लगे। अब आप ही सोचिये कि, "जिसकी चमड़ी उतर रही हो, उसे तकलीफ़ ज्यादा होती है या जो चमड़ी उतार रहा हो, उसे ज्यादा होती है? समताभाव में ओतप्रोत मुनि ने राजा के जल्लादों पर जरा भी द्वेष नहीं किया। चार का शरण स्वीकार कर, काया को वोसिरा कर मुनि शुक्लध्यान पर मुनि चढ़ गये। चड़-चड़ चमड़ी उतरती गयी और मुनि शुक्लध्यान में आगे बढ़ते-बढ़ते केवलज्ञान प्राप्त कर मोक्ष में चले गये। पास में रही हुई मुहपत्ति खून से लाल For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004221
Book TitlePaschattap
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunratnasuri
PublisherJingun Aradhak Trust
Publication Year
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, C000, & C020
File Size18 MB
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