SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 10
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 1... कहीं मुरक्षा न जाए एक भव्य आत्मा की आत्मकथा! गुरुदेव ! आपके पास आया हूँ, महान पापी हूँ, अधम हूँ । मेरे जीवन में मैंने कौन-कौन से पाप नहीं किये हैं? यह एक प्रश्न हैं। आज आपकी हृदयवेधक वाणी से वे पाप मुझे खून के कण-कण में व शरीर के रोम-रोम में काँटों की तरह चुभ रहे हैं। गुरु भगवंत! इन दुष्कृत्यों का बोझा ढोए हुए, भवोभव में भटकते रहना, अनेक प्रकार की वेदनाएँ सहन करना, वापस नया पाप करना और बार बार भटकना ! निर्विण्ण हो रही है चेतना इस श्रृंखला से ! गुरुदेव ! काँप उठी है अन्तर्चेतना, व्याकुल हो गया है मन, अब तक पाप की गंदी गलियों में भटकने से। ओह! अनन्त काल से इस आत्मा ने और किया भी क्या है, पापों के संचय के सिवाय ? उनके गाढ़ संस्कारों ने मुझे इस प्रकार बांध रखा है कि छूटने की बात तो दूर, परन्तु इस जन्म में भी मुझे पशुतुल्य बना दिया है। Jain Education International धन्य हैं वे पुरुष ! जिनका जीवन बाल्यकाल से ही निष्कलंक रहा है। लेकिन अफसोस! पाप के गाढ संस्कारों ने तो मुझे बाल्यकाल से ही पाप करने में प्रवीण बना दिया है । ४-५ वर्ष की उम्र में ही रसना के अधीन होकर घर में पीपरमेंट - चोकलेट की चोरी ने कलंकित जीवन का श्रीगणेश किया। खाने की लालसा बढ़ने पर दूसरों के घरों में.... अरे! मंदिर या कोई धर्मस्थान में जाकर पैसे की चोरी कर गुप्त रीति से नई नई स्वादिष्ट वस्तुएँ खाने लगा। अरे ! कई बार तो पकड़ा भी गया। लेकिन वहाँ भी छुटकारे में असत्य सहायक बनने के कारण मायामृषावाद मुझे अतिप्रिय हो गया। फिर तो पूछना ही क्या? अनेक प्रकार की कपटजाल बिछाने में, मैं निपुण हो गया। एक बार कौतुकवृत्ति के कारण गुप्त रीति से, घर के बड़ी उम्रवाले व्यक्तियों के परस्पर अंग-स्पर्श को देखकर मन उसकी ओर आकर्षित हुआ ! छोटे-छोटे निर्दोष बालक-बालिकाओं के साथ खेलकूद में स्पर्श के पाप का स्थान मुझे For Personal & Private Use Only मिल गया। फिर तो केरम खेलें या । खो-खो खेलें, वासनापोषण का कार्य ही मुख्य बन गया। कोई न कोई निमित्त प्राप्त कर विजातीय के अंगोपांग के स्पर्श की धुन लग गई ।। बाहरी दिखावा तो हास-उपहास । का रहता, परंतु अंतर में तो वासना की अग्नि प्रज्वलित रहती। क्या कहूं गुरुदेव! कहने की हिम्मत नहीं है। किन्तु व्याकुल हो गया हूँ पापों की इस हारमाला से ! आपकी वाणी से यह बोध हुआ है। कि यदि गंदी गटर में से कूड़ाकरकट नहीं निकाला जाएगा, तो आराधना का इत्र भी गंदगी में बदल जाएगा। केन्सर की गांठ का ऑपरेशन करवा दिया जाए, तो लोग बच जाते हैं और जो छोटासा काँटा न निकाला जाए, तो धीरे-धीरे पूरे शरीर में मवाद हो jainelibrary.org
SR No.004221
Book TitlePaschattap
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunratnasuri
PublisherJingun Aradhak Trust
Publication Year
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, C000, & C020
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy