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श्री पंचपरमेष्ठी भगवंत गुरुदेव महाराज! आपनी सम्यक्ज्ञान, सम्यक्दर्शन, सम्यक्चारित्र, तप, संयम, निर्जरा आदि मुक्तिमार्ग यथा शक्तिले शुद्ध उपयोग सहित आराधन पालन स्पर्शन करवानी आज्ञा छे. वारंवार शुभ उपयोग संबंधी सज्झाय ध्यानादिक अभिग्रहनियम पच्चखाणादि करवा, कराववानी, समिति-गुप्ति आदि सर्व प्रकारे आज्ञा छे.
निश्चे चित्त शुद्ध मुख पढत, तीन योग थिर थाय ; दुर्लभ दीसे कायरा, हलु कर्मी चित्त भाय. अक्षर पद हीणो अधिक, भूल चूक कही होय; अरिहा सिद्ध निज साखसे, मिच्छा दुक्कड मोय.
भूल चूक मिच्छामि दुक्कडं
वृहद् आलोचना समाप्त.
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