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हे जीव ! आ क्लेश रूप संसार थकी विराम पाम, विराम पाम ; कांईक विचार, प्रमाद छोड़ी जागृत था ! जागृत था !! नहीं तो रत्नचिंतामणि जेवो आ मनुष्य देह निष्फल जशे !
हे जीव ! हवे तारे सत्पुरूषनी आज्ञा निश्चय उपासवा योग्य छे.
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः
सप्तदोष परिहार हे काम ! हे मान ! हे संगउदय ! हे वचनवर्गणा ! हे मोह ! हे मोहदया ! हे शिथिलता ! तमे शा माटे अंतराय करो छो? परम अनुग्रह करीने हवे अनुकूल थाओ ! अनुकूल थाओ !!
श्री आत्मसिद्धि शास्त्र
जे स्वरूप समज्या विना, पाम्यो दुःख अनंत; समजाव्यु ते पद नमु, श्री सद्गुरूभगवंत.
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