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__ जो कदी प्रगटपणे वर्तमानमां केवलज्ञाननी उत्पत्ति थई नथी, पण जेना वचनना विचारयोगे शक्तिपणे केवलज्ञान छ एम स्पष्ट जाण्युछे, श्रद्धापणे केवलज्ञान थयुछे, विचार दशाए केवल ज्ञान थयुछे, ईच्छा दशाए केवलज्ञान थयुछे, मुख्य नयना हेतु थी केवल ज्ञान वर्ते छे. ते केवल ज्ञान सर्व अव्याबाध सुखनुं प्रगट करनार, जेना योगे सहजमात्रमा जीव पामवा योग्य थयो, ते सत्पुरूषना उपकारने सर्वोत्कृष्ट भक्तिए नमस्कार हो ! नमस्कार हो !
धर्मनिष्ठा वीतरागनो कहेलो परम शांत रसमय धर्म पूर्ण सत्य छे, एवो निश्चय राखवो, जीवना अनअधिकारीपणाने लीघे तथा सत्पुरूषना योग विना समजातु नथी; तो पण तेना जेवु जीवने संसार-रोग मटाडवा ने बीजु कोई पूर्ण हितकारी औषध नथी, एवु वारंवार चितवन करवु. आ परम तत्त्व छे, तेनो मने सदाय निश्चय रहो; ए यथार्थ स्वरूप मारा हृदयने विषे प्रकाश करो, अने जन्मादि बंधन थी अत्यन्त निवृत्ति आओ! निवृत्ति थाओ !!
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