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राज-वाणी :
नित्य कर्त्तव्य
"यदि तू संसार समागम में स्वतंत्र हो तो तेरे आज के दिन के निम्नानुसार विभाग कर
१ प्रहर भक्तिकर्त्तव्य
१ प्रहर धर्मकर्त्तव्य
१ प्रहर आहार प्रयोजन
१ प्रहर विद्या प्रयोजन
२ प्रहर निद्रा
२ प्रहर संसार प्रयोजन
· "
" प्रशस्त पुरुष की भक्ति करें, उसका स्मरण करें, गुणचिंतन करें ।”
भक्ति क्यों?
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आश्रय भक्तिमार्ग
" सर्व विभाव से उदासीन एवं अत्यंत शुद्ध निज पर्याय की आत्मा सहजरूप से उपासना करे उसे श्री जिन ने तीव्र ज्ञानदशा कही है । उस दशा की संप्राप्ति के बिना कोई भी जीव बंधनमुक्त नहीं हो
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