________________
(xix)
इस काल में ऐसे ज्ञानी पुरुषों का साक्षात्कार होते हुए भी हम लोग लाभ उठाने से वंचित रह गये । इसका कारण आपके उदयानुसार विचरण था। जो लोग निखालस भाव से अध्यात्मउन्नति हेतु आपके सम्पर्क में आये और जिन्होंने आपकी निर्मल धारा को पहचाना उसका पान करते रहे। मगर ऐसे बहुत कम मुमुक्षु मिले । यह काल का प्रभाव है।
• आपकी पावन उपस्थिति में इस आश्रम की सर्वतोमुखी उन्नति हुई और अभी भक्ति की साकार मूर्ति आत्मज्ञानी पूज्य श्री 'धनदेवी' माताजी की निश्रा में दिनों दिन हो रही है । पूज्य माताजी की ज्ञान धारा भी अद्भुत है, जिसका परिचय स्वयं पूज्य गुरुदेव श्री. सहजानंदघन जी ने ही कराया था।
इस आश्रम में आत्मशांति के हेतु आने वाले साधर्मी भाई. बहनों के लिये ठहरने की और भोजनशाला की व्यवस्था है। नित्य कार्यक्रम में सुबह भक्ति, स्वाध्याय, पूजा, दोपहर को स्वाध्याय भक्ति एवं रात को भक्ति का क्रम नित्य चलता है। पूनम की रात को अखंड भक्ति का कार्यक्रम होता है। विशेष तिथियों में भी बड़ी पूजा वगैरह का कार्यक्रम भी चलता है। पर्युषण पर्व पर कई लोग यहाँ । पर पर्वाराधना हेतु एकत्रित होते हैं। कई बड़ी तपस्या वाले भी यहाँ पधारकर आनन्द से तपस्या करते हैं। दीपावली पर भी तीन दिन तक अखंड भक्ति का कार्यक्रम चलता है। पर्वतिथियों मे कई मुमुक्षुओं की ओर से स्वामी वात्सल्य भी होते रहते हैं । साधना करने वाले मुमुक्षुओं के लिये यह एक एकांत और शांत वातावरण का अच्छा स्थान है।
यहां पर परमकृपालु श्रीमद् राजचन्द्रजी, योगीन्द्र श्री सहजानन्दघनजी महाराज का भव्य गुरुमन्दिर बना हुआ है। पास में युगप्रधान दादा श्री. जिनदत्तसूरि महाराज का दादावाडी मन्दिर
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org