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3. उपघात
ज्ञान के साधनों का नाश करना या जलाना आदि। जैसे आज कितने ही स्कूल-कॉलेजों के छात्र अपनी मूर्खता से पढ़ने की पुस्तकों की होली करते हैं... और भयंकर ज्ञानावरणीय कर्म बाँधते हैं.... जिस कर्म के उदय में आने पर गूंगा बनकर ऊँ.....ऊँ......कहना पड़ेगा...... रोगी शरीर मिलेगा ।
गुणमंजरी का उदाहरण इस स्थल पर अप्रासंगिक नहीं कहा जायेगा ।
गुणमंजरी
जिनदेव सेठ की पत्नी का नाम सुंदरी था। पाँच पुत्र और चार पुत्रियों के साथ सेठ अपनी गृहनैया चला रहे थे। बच्चों को पढ़ाने के लिये एक शिक्षक रखा। बच्चे उद्दंड थे। शिक्षक उन्हें सेठ के कहने से मार-पीट, डरा-धमका कर पढ़ाते थे । 'सोटी बाजे चम-चम, विद्या आये घम घम' का सिद्धांत जो था । बच्चे जाकर अपनी माँ से शिकायत करते थे। माँ अनपढ़, गँवार और ज्ञान पर प्रद्वेष रखने वाली थी। वह बच्चों से कहती- 'बच्चों ! तुम्हारा बाप जिस अध्यापक को बुलाता है, उसे कैसे भगाना, तुम नहीं जानते? अपने पास अथाह धन है, पढ़ने की क्या जरूरत है ? कल पंडितजी आये तो उन्हें पत्थर मारकर भगा देना... नाम नहीं लेंगे दूसरे दिन आने का....!
बच्चों को तो इशारा ही काफी था.... बंदर को दारू पिला दी...... फिर तो क्या कहने! बच्चों ने पंडितजी को मार भगाया और इधर सुंदरी ने ज्ञान के प्रद्वेष से पाठ्य सामग्री सब कुछ आग में झोंककर जला कर राख बना दी।
रे कर्म तेरी गति न्यारी...!! / 88
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