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________________ गोत्र कर्म ने जिस ऊँच-नीच की व्यवस्था की है.... वह तभी टूट सकती है, जब आत्मा उस कर्म का सर्वथा नाश करेगी। ऊँचनीच यह गोत्र कर्म की विकृति है । 8. अंतराय कर्म आत्मा का आठवाँ गुण अनंतशक्ति अनंतवीर्य है । इसे अंतरायकर्म रोकता है। यह भंडारी के समान है। 1 जैसे राजा के पास कोई याचक आया। राजा उस पर खुश हो गया। मगर भंडारी राजा को रोकता है। दान देने की इच्छा होते हुए भी काम कारगर नहीं होता है। सरकार ने तो एक करोड़ रुपये पास कर दिये, मगर लोगों के पास एक लाख भी नहीं पहुँचे हो, ऐसे उदाहरण बहुत मिलते हैं। इसी तरह आत्मा में अनंत शक्ति आदि जो गुण रहे हुए हैं, उन्हें भंडारी की तरह यह कर्म रोकता है। अंतराय कर्म के उदय से कृपणता, पराधीनता, दरिद्रता, निर्बलता आदि विकृतियाँ उत्पन्न होती है। आत्मा के गुण उन्हें रोकने वाले कर्म और उन कर्मों की उपमा और विकृतियाँ गतपृष्ठों में समझायी गई है..... उन्हीं बातों को आप नीचे के चार्ट में पायेंगे । ज्ञानावरण आदि कर्म के अवांतर भेद और उनके बंधहेतुओं का विस्तृत विचार हम अगले प्रकरणों में करेंगे। Jain Education International रे कर्म तेरी गति न्यारी...!! / 73 For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004216
Book TitleRe Karm Teri Gati Nyari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunratnasuri
PublisherJingun Aradhak Trust
Publication Year
Total Pages170
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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