SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 72
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बदलने के लिये हमारी फैशन परस्त बहू-बेटियाँ ब्यूटीपार्लर में जाकर पंचेन्द्रिय हिंसा कर अंडों का रस अपने हाथ-पाँव पर मलाती हैं...! अहिंसाप्रेमियों ! जागो, अपनी बहू-बेटियों को ब्यूटी पार्लर में जाने से रोको या कड़क चेतावनी दो... वरना उपेक्षा करने वाले आप भी निर्दोष नहीं कहला सकते। चमड़ी को गोरी बनाने की बजाय आत्मा को गोरी बनाइये.....चमड़ी की कोमलता से बढ़कर हृदय की कोमलता है। 7.गोत्रकर्म ___ जीव का सातवाँ गुण है अगुरुलघुपन । वास्तविक रूप से जीव न तो उच्च है और न ही नीच....गोत्र कर्म इस गुण को रोकता है और उच्च-नीच के व्यवहार में निमित्त बनता है। इसे कुम्हार की उपमा दी गई है। कुम्हार एक ऐसी हस्ती है जो भगवान के पूजन में काम आये वैसा मांगलिक घड़ा-कलश भी बनाता है और शराब की स्टोरेज हो वैसे अशुभ घड़े भी तैयार करता है। उसी तरह गोत्रकर्म उच्च-नीच गोत्र दोनों देता है। ____ जैन-दर्शन बिल्कुल साइंटिफिक है। जैन-दर्शन हर बात को दो पहलूओं में बाँटता है - निश्चय और व्यवहार। निश्चयनय प्राणीमात्र को सिद्ध-बुद्ध, निरंजन-निराकार कर्मरहित मानता है, अत: इस नय से 'आत्मवत् सर्वभूतेषु' की अलख जगती है....इस नय से न कोई उच्च है न कोई नीच, जैसे हम वैसे प्राणीमात्र ! इसीलिये तो किसी भी जीव की हिंसा करना.....भयंकर पाप है (जातपाँत को नहीं मानने की डिंग हाकने वालों ने कितने कत्लखाने खोल रखे हैं, यह सर्वविदित है।) व्यवहार नय से आत्मा कर्म युक्त है, अत: ऊँच-नीच भी। इसका मतलब यह तो है ही नहीं कि हमें धिक्कार-तिरस्कार करना रे कर्म तेरी गति न्यारी...!! /71 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004216
Book TitleRe Karm Teri Gati Nyari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunratnasuri
PublisherJingun Aradhak Trust
Publication Year
Total Pages170
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy