________________
का ज्ञान इतना संकुचित हो गया है... पीठ पीछे क्या हो रहा है, उसका भी हमें पता नहीं ! कारण ? ज्ञानावरण कर्म का आवरण ! जैसे सारी दुनिया को प्रकाशित करने का सामर्थ्य वाला सूर्य ....... बादल से ढक जाता है, तब सभी पदार्थों को पूर्णरूप से प्रकाशित नहीं कर सकता है.... ठीक उसी तरह, अनंत वस्तुओं को दर्शाने वाला आत्मा में पड़ा हुआ ज्ञान भी जब ज्ञानावरण कर्म रूपी बादलों से ढक जाता है, तब जीव अनंत वस्तुओं का ज्ञान नहीं कर पाता है।
शास्त्रकार भगवंतों ने ज्ञानावरण को पट्टी की उपमा दी है। जैसे किसी व्यक्ति की आँखों पर ज्यादा पड़वाली कपड़े की पट्टी बाँध दी जाती है...तो आँखों के रहते भी वह अँधा है..... क्योंकि वह कुछ भी देख नहीं पाता ।
उसी तरह हम भी अनंतज्ञान से संपन्न हैं फिर भी जगत के सभी पदार्थों को देख नहीं पाते हैं।
ज्यों-ज्यों आँखों के ऊपर की पट्टी खुल जाती है, त्यों-त्यों दृश्य स्पष्ट होते जाते हैं। ठीक उसी तरह ज्यों-ज्यों हमारा ज्ञानावरण कर्म हटता जायेगा, त्यों-त्यों हमारा ज्ञान बढ़ता जायेगा । यकीन कीजिये....एक दिन संपूर्ण ज्ञानावरण कर्म नष्ट हो जायेगा..... ....तब हमें सारे विश्व का ज्ञान हो जायेगा ।
ज्ञानावरणकर्म-प्रकृति के उदय से अज्ञानरूपी विकृति पैदा .. होती है । .
मासतुष मुनि
एक मुनिराज ने उत्तराध्ययन के तीन अध्ययन कंठस्थ कर लिये । परन्तु ज्ञानावरण कर्म का अचानक उदय आने से चौथा
रे कर्म तेरी गति न्यारी...!! / 55
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org