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________________ एवं रविवारीय शिविरों का आयोजन किया.... जिसमें आज तक हजारों युवकों ने कर्मवाद आदि विषयों को समझकर अपने जीवन की काया पलट की। पूज्य गुरुदेवश्री की विलक्षण और सुबोध शैली से संस्कारित दुरूह कर्मवाद की प्रवचनधारा युवकों के मन भा गई। अन्य युवक भी इससे वंचित न रह जाय, इस हेतु यह पुस्तक प्रकाशित की जा रही है। गुजराती में इसके दो संस्करण छप चुके हैं। अनुवाद : रचनात्मक भावानुवाद की साम्प्रतकालीन शैली को अनुलक्ष कर यह दुरूह कार्य पूज्य गुरुदेवश्री के आजीवनान्तेवासी, कई पुस्तकों के लेखक अनुवादक संपादक प्रवचन प्रभावक पंन्यासप्रवर श्री रश्मिरत्नविजयजी म. सा. को सौंपा गया। उन्होंने इस जिम्मेदारी का बखूबी निर्वहन करते हुए अपना समय दिया, तदर्थ हम उनको नतमस्तक भावभरी वंदना करते हैं। इस पुस्तक में हमने चित्रों का माध्यम भी रखा है....जिससे विषय बिल्कुल सहज ढंग से गले उतर जाय। पूज्य गुरुदेव आचार्य भगवंतश्री कर्म-साहित्य के सुप्रसिद्ध विद्वानों में से एक हैं। आपश्री की संस्कृत-प्राकृत भाषा निबद्ध कृति 'क्षपकश्रेणि' (खवगसेढी) ने विद्वानों की मंडली में काफी कीर्ति उपार्जित की है। जर्मनी की बर्लिन युनिवर्सिटी के कर्मसाहित्य पर रिसर्च कर रहे प्रो. क्लाउज ब्रून ने तो यहाँ तक लिख दिया "जैनदर्शन के कर्मवाद को समझने के लिये यह ग्रन्थ हमें काफी सहायता प्रदान कर रहा है। आपने कमाल कर दिया....गागर में सागर भर दिया....!!" पूज्य गुरुदेव आचार्य भगवंतश्री की देश-विदेशों में ख्याति प्राप्त इस विद्वता का लाभ हमारी युवापीढ़ी को भी मिले...इस उद्देश्य से यह पुस्तक प्रकाशित की जा रही है। पाठकगण ! इस पुस्तक के विषय में आपके मुक्त विचार, सुझाव आदि का स्वागत रहेगा। जाने-अनजाने यदि वीतराग परमात्मा के विरूद्ध कुछ भी मुद्रित हुआ हो तो त्रिविध-त्रिविध मिच्छामि दुक्कडं । -जिनगुण आराधक ट्रस्ट, मुम्बई रे कर्म तेरी गति न्यारी...।।/4 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004216
Book TitleRe Karm Teri Gati Nyari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunratnasuri
PublisherJingun Aradhak Trust
Publication Year
Total Pages170
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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