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________________ और मुँहपत्ति आदि कपड़े खून से लथपथ हो गये । रजोहरण को मांस का टूकड़ा समझकर एक पक्षी उसे उठाकर ले गया। आकाश में उड़ते-उड़ते ज्योंहि रानी के महल का प्रांगण आया... संयोगवशात् उसकी पकड़ कमजोर हुई और वह रजोहरण धम्म से नीचे गिर गया। रानी ने रजोहरण को देखते ही पहचान लिया कि अरे ! यह तो मेरे भाई का रजोहरण है ! यह खून सना कैसे ? पता लगवाया तो पता चला कि यह खून और किसी ने नहीं स्वयं राजा ने करवाया है... । रानी शोकाकुल होकर वैराग्यवासित बन गई और उसने खाना-पीना छोड़ दिया और अनशन स्वीकार लिया । राजा को जब सच्ची बात समझ में आई तो उसे अपार पश्चात्ताप हुआ.... परन्तु 'अब पछताये क्या होत है जब चिड़िया चुग गई खेत' । राजा गाँव के बाहर गया। मुनि के प्राण पंखेरू तो कभी के उड़ चुके थे... । राजा मुनि के शव के पास बैठकर करूण विलाप करते हुए क्षमा माँगने लगा। उसे इसकी चिंता नहीं थी कि लोग मुझे क्या कहेंगे, लोग मुझे कैसा ढोंगी और बेवकूफ समझेंगे..... । वह सोचने लगा कि 'मुझे लोगों की परवाह नहीं... मुझे उनका सर्टिफिकेट नहीं चाहिये.... पाप मैंने किया है तो पश्चात्ताप मुझे ही करना होगा..... इसी शरीर को मैंने कटवाया है तो इसी के सामने मुझे माफी माँगनी होगी।' वह बार-बार उठकर मुनि-शरीर के पाँवों में गिरकर अपनी आँखों से बहती अश्रुधारा की गंगा-जमुना से मुनि के पाँवों को प्रक्षालित करने लगा । ओह ! रानी के कारण मेरे अपराध का मुझे भान हो गया....! ऐसे मैंने इस भव में और भवोंभव में न जाने कितने अपराध किये होंगे? जिनकी मुझे जानकारी भी नहीं है ! मिच्छामि दुक्कडं... मिच्छामि दुक्कडं.... क्षमा करो..... क्षमा करो...' यह बोलते-बोलते राजा भवोभव रे कर्म तेरी गति न्यारी...!! / 38 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004216
Book TitleRe Karm Teri Gati Nyari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunratnasuri
PublisherJingun Aradhak Trust
Publication Year
Total Pages170
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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