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परिशिष्ट
इस पुस्तक को उपन्यास की तरह एक बार पढ़कर अलमारी को मत सौंपना.....पुस्तक की दुर्दशा के साथ जीवन की उन्नति की भी दुर्दशा हो जायेगी....चूँकि इस पुस्तक को बार-बार पढ़ने से और पढ़कर चिन्तन-मनन पूर्वक हृदय में उतारने से जीवन उज्ज्वल उन्नति के पथ पर अग्रसर होता है।
पुस्तक को दो-तीन बार पढ़ने के बाद निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर ढूँढ लीजिये। सही उत्तर नीचे दिये गये हैं। उसके साथ निरीक्षण करके आपके द्वारा दिये गये उत्तरों को चिह्नित करते जाइये....आपकी स्मरण-शक्ति को एक चेलेंज है, चुनौति है। इस परीक्षा से आप अपनी बुद्धि को कसौटी पर परखिये....! सत्तर प्रतिशत विशिष्ट प्रथम श्रेणी, साठ प्रतिशत प्रथम श्रेणी, पैंतालीस प्रतिशत द्वितीय श्रेणी, पैंतीस प्रतिशत तृतीय श्रेणी और फिर यदि उससे भी कम मार्क्स आये....तो फिर ? हर एक प्रश्न का एक मार्क है।
आध्यात्मिक ज्ञानशिविर, कर्मवाद के विषय में पूछे गये प्रश्न
सूचना- नीचे वाक्य दिये गये है....हर एक प्रश्न में एक या दो रिक्त स्थान है। हर एक के आगे कुछ शब्द दिये गये हैं......उनमें से योग्य शब्दों को चुनकर रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिये.......उत्तर का शब्द पूरा लिखने की बजाय 'अ' 'ब' या 'स' आदि उत्तर पत्र में लिखिये... 1. कर्म की मुख्य..........प्रकृतियाँ हैं।
(अ) पाँच (ब) छह (स) आठ
रे कर्म तेरी गति न्यारी...!! /162
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