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________________ नाक टेढ़ा था....कान टूटे हुए ... आँखें टेढ़ी.... बाल पीले...... पेट बड़ा.... शरीर ठिगना.....। कुल मिलाकर देखा जाय तो कुछ भी सही नहीं था.....अत: वह बड़ा कदरूप लगता था। बचपन में ही बेसहारा-अनाथ हो गया। माँ - बाप की मृत्यु हो गई । अत: वह ननिहाल में ही बड़ा हुआ। मामाजी के काम-काज में भी हमेंशा हाथ बँटाता रहता था । नंदिषेण सीधा-सादा आदमी था। लोगों ने उसे बहकाया, तो वह उनकी बातों में आ गया। वह सोचने लगा कि मामा के घर रहना उचित नहीं है....। यहाँ मेरी कभी तरक्की नहीं हो सकेगी। मेरी जवानी ऐसे ही निकल जायेगी तथा शादी भी नहीं हो पायेगी । अतः परदेश में चले जाना चाहिये । नंदिषेण ने अपना निर्णय मामाजी को कह सुनाया । मामाजी ने खूब समझाया और अंत में यह भी कह दिया 'रही तेरी शादी की बात, तो उसकी चिन्ता छोड़ दे..... मेरी सात लड़कियाँ हैं, उनमें से किसी एक के साथ तेरी शादी कर दूँगा । ( अलग-अलग देश के भिन्न-भिन्न रीतिरिवाज होते हैं।) मामाजी ने सातों लड़कियों को बुलवाया और पूछा तो सभी ने एक स्वर में स्पष्ट तौर पर कह दिया कि हमें आत्महत्या करना मंजूर है, परन्तु नंदिषेण जैसे बदरूप के साथ शादी करना कतई मंजूर नहीं....! तब सुज्ञ नंदिषेण ने विचार किया 'इसमें इनका कोई दोष नहीं है.... दोष मेरे अपने कर्मों का है। अतः मुझे यहाँ से कहीं दूसरी जगह अवश्य जाना चाहिये ।' अत: एक दिन नंदिषेण बिना किसी को बताये वहाँ से निकल पड़ा। घूमता- घूमता वह रत्नपुर पहुँचा। बगीचे में लोगों को आनंद रे कर्म तेरी गति न्यारी...!! / 145 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004216
Book TitleRe Karm Teri Gati Nyari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunratnasuri
PublisherJingun Aradhak Trust
Publication Year
Total Pages170
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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