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________________ पड़ती है .... यह सोच उन्होंने वैद्यक धंधा छोड़ दिया। मुनिश्री विहार करके अन्यत्र चले गये । इधर वैद्यराजजी का दूसरे धंधे में हाथ जमा नहीं । वैद्यराजजी के विचारों में गिरावट आ गई। वापिस 'वो ही रफ्तार' चालू कर दी..... । वैद्यक धंधा चालू कर लिया । वनस्पति की हिंसा और मृत्युपर्यन्त आर्त्तध्यान के कारण आयुष्य पूर्ण कर वैद्यराजजी का जीव जंगल में बंदर बना । एक बार मुनिराजश्री जंगल में से विहार करते थे। पाँव में एक जहरीला काँटा लग गया । लाख प्रयत्न करने पर भी वह निकल नहीं रहा था। बंदर ने यह दृश्य देखा...... मुनि को देखा..... और उसे जाति स्मरण हो गया। बंदर को अपना पूर्वभव दिखा...वैद्यक याद आया। वह दौड़ा और वनस्पति का रस उठा लाया......पाँव के तलुवे लगा दिया और काँटा खींच निकाला। मुनि के संपर्क से बंदर को सुंदर आराधना के भाव जोगे.... और उसने देसावगासिक पच्चक्खाण ले लिया.... 'मुझे इस शिला को छोड़ कहीं भी अन्यत्र नहीं जाना।' मुनि विहार कर चले गये। भूखा बाघ आया... बंदर अपने नियम पर अडिग रहा....डर के मारे या जिंदा रहने की उत्कट इच्छा को संजोये वहाँ से दूम दबाकर भागा नहीं...! मर कर देव बना । सर्व विरति = सर्व विरति के पर्यायवाची नाम = विरति । चारित्र दीक्षा = प्रव्रज्या Jain Education International सर्व विरति को लेकर सुंदर साधना कर धन्ना अनगार आदि कई महामुनियों ने देव आयुष्य बाँधा....( और परंपरा से मोक्ष में भी पधारेंगे) । - रे कर्म तेरी गति न्यारी...!! / 126 For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004216
Book TitleRe Karm Teri Gati Nyari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunratnasuri
PublisherJingun Aradhak Trust
Publication Year
Total Pages170
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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