SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 120
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सुकोशल मुनि की माँ अयोध्या के राजा कीर्तिधर गवाक्ष में बैठे सृष्टि का सौंदर्य निहार रहे थे। अमावस्या के दिन सूर्यग्रहण हो रहा था। सूर्यग्रहण देख कीर्तिधर राजा को वैराग्य आ गया। सुकोशल का राज्याभिषेक कर चारित्र ले लिया। एक बार विचरण करते हुए राजर्षि अयोध्या पधारे। उन्हीं की पत्नी सहदेवी ने देख लिया....ओह ! गजब हो जायेगा...यदि इनके संपर्क में मेरा लाल सुकोशल आ गया तो वह दीक्षा ले लेगा, तो फिर मुझे राजमाता कौन पुकारेगा? इस मोह से अधीन होकर उसने आदेश जारी कर दिया कि सभी संत-संन्यासियों को गाँव के बाहर निकाल दो। एक सैनिक डंडा घुमाता हुआ कीर्तिधर मुनि को निकालने लगा...यह दृश्य सुकोशल की धावमाता ने देख लिया....उसकी आँखें बरबस टपकने लगी। सुकोशल ने कारण पूछा। पिता का वृत्तांत सुनाया, 'माफी माँग कर आता हूँ' कहकर सुकोशल पिता मुनि के चरणों में गिर पड़ा.... _ 'राजेश्वरी सो नरकेश्वरी' का पाठ सुनाकर सुंदर वैराग्य का उपदेश दिया। गर्भवती पत्नी के गर्भ का राज्याभिषेक कर माँ की मनाही के बावजूद सुकोशल ने दीक्षा ली। सहदेवी का इकलौता बेटा था, फिर भी दीक्षा ली। सहदेवी 'हाय ! मेरा पुत्र गया' आर्तध्यान में मरकर बाघिन बनी.....चूँकि आर्तध्यान से तिर्यंचयोनि प्राप्त होती है। चार महिने के उपवासी दोनों मुनि सिद्धगिरिराज से नीचे उतर रहे थे कि सामने से भूखी बाघिन गर्जना करती हुई रे कर्म तेरी गति न्यारी...!! /119 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004216
Book TitleRe Karm Teri Gati Nyari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunratnasuri
PublisherJingun Aradhak Trust
Publication Year
Total Pages170
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy