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________________ इस तरह कषाय के सोलह भेद हुए .... नो कषाय के नौ भेद 1. हास्यमोहनीय : जिस कर्म के उदय से......किसी कारणवश या अकारण ही हँसना आए..... 2. रति मोहनीय : जिसके उदय से मन पसंद वस्तु मिलने पर खुशी हो..... 3. शोक मोहनीय : जिसके उदय से जीव इष्ट वस्तु के वियोग में रोने लगे..... सिर पटके नि:श्वास छोड़े आदि..... 4. अरति मोहनीय : जिसके उदय से मन को अपसंद हो वैसी वस्तु की प्राप्ति में अप्रीति हो... 5. भय मोहनीय : जिसके उदय से किसी निमित्त को लेकर या निमित्त बिना ही भय उत्पन्न हो...... 6. दुगुंछा मोहनीय - जिसके उदय से अच्छी-बुरी, सुंदरअसुंदर चीजों पर दुगुंछा पैदा हो.... 7. पुरुषवेद: जिसके उदय से स्त्री को भोगने की इच्छा पैदा हो..... 8. स्त्रीवेद : जिसके उदय से पुरुष को भोगने की इच्छा पैदा हो। 9. नपुंसकवेद : जिसके उदय से स्त्री-पुरुष दोनों को भोगने की इच्छा उत्पन्न होती है। इस दृष्टि से हिट्रोसेक्स्योलिटि, होमोसेक्स्योलिटि, बीसेक्स्योलिटि लेस्बीयन का आधुनिक वर्गीकरण पूर्वोक्त तीन भेद रे कर्म तेरी गति न्यारी...!! / 108 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004216
Book TitleRe Karm Teri Gati Nyari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunratnasuri
PublisherJingun Aradhak Trust
Publication Year
Total Pages170
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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