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________________ उसके द्वारा कहा गया तुम (ही) मुणि को पुच्छह सो वह सब सव्वु कहिहिइ ससुरु उवस्सइ जाएवि सावमाणु कह देंगे ससुर उपासरे में जाकर अपमान सहित मुणि पुच्छ हे मुणि मुनि को पूछता है हे मुनि! आज अज्जु मर गेहि (ता) 3/1 स (उत्त) भूकृ 1/1 अनि (तुम्ह) 1/2 स (मुणि) 2/1 (पुच्छ) विधि 2/2 सक (त) 1/1 स (सव्व) 2/1 सवि (कह) भवि 3/1 सक (ससुर) 1/1 (उवस्सअ) 7/1 (जा) संकृ [(स)+(अवमाणु)] [(स)-(अवमाण) 1/1 वि] (मुणि) 2/1 (पुच्छ) व 3/1 सक (मुणि) 8/1 अव्यय (अम्ह) 6/1 स . (गेह) 7/1 (भिकख) 4/1 (तुम्ह) 1/2 स अव्यय (आगय) भूकृ 1/2 अनि (मुनि) 1/1 (कह) व 3/1 सक (तुम्ह) 6/2 स (घर) 2/1 अव्यय (जाण) व 3/1 सक (तुम्ह) 1/1 स अव्यय (वस) व 3/1 अक (सेट्ठि) 1/1 (वियार) व 3/1 सक (मुणि) 1/1 (असच्च) 2/1 (कह) व 3/1 सक अव्यय मे घर में भिक्खसु भिक्षा के लिए तुम आंगया मणि कहेइ आये मुनि कहता है घरु जाणामि कुत्थ . वसहि.. तुम्हारे घर को नहीं जानता हूँ तुम कहाँ रहते हो सेठ विचारता है मुनि असत्य कहता है फिर वियारेइ मुणि असचु 'अपभ्रंश अभ्यास उत्तर पुस्तक 139 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004213
Book TitleApbhramsa Abhyas Uttar Pustak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2011
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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