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________________ प्रकाशकीय 'अपभ्रंश अभ्यास सौरभ (छंद एवं अलंकार) ' पुस्तक पाठकों के हाथों में समर्पित करते हुए हमें हर्ष का अनुभव हो रहा है। अपभ्रंश भारतीय आर्य परिवार की एक सुसमृद्ध लोकभाषा रही है । इसका प्रकाशित-अप्रकाशित विपुल साहित्य इसके गौरवमयी गाथा कहने में समर्थ है। महाकवि स्वयंभू, पुष्पदन्त, धनपाल, वीर, नयनन्दि, कनकामर, जोइन्दु, रामसिंह, हेमचन्द्र आदि अपभ्रंश भाषा के अमर साहित्यकार है । कोई भी देश व संस्कृति इनके आधार से अपना मस्तक ऊँचा रख सकती है। विद्वानों का मत है - " अपभ्रंश ही वह आर्यभाषा है जो ईसा की लगभग सातवीं शताब्दी से तेरहवीं शताब्दी तक सम्पूर्ण उत्तर- भारत की सामान्य लोक-जीवन के परस्पर भाव - विनिमय और व्यवहार की बोली रही है ।" यह निर्विवाद तथ्य है कि अपभ्रंश की कोख से ही सिन्धी, पंजाबी, मराठी, गुजराती, राजस्थानी, बिहारी, उड़िया, बंगला, असमी, पश्चिमी हिन्दी, पूर्वी हिन्दी आदि आधुनिक भारतीय भाषाओं का जन्म हुआ है। अपभ्रंश भाषा को सीखने-समझने को ध्यान में रखकर 'अपभ्रंश रचना सौरभ', 'अपभ्रंश अभ्यास सौरभ', 'अपभ्रंश काव्य सौरभ', 'प्रौढ अपभ्रंश रचना सौरभ', 'अपभ्रंश एक परिचय' आदि पुस्तकों का प्रकाशन किया जा चुका है। इसी क्रम में ' अपभ्रंश अभ्यास सौरभ (छंद एवं अलकार) ' पुस्तक तैयार की गई है। प्रस्तुत पुस्तक में अपभ्रंश के पद्धडिया, पादाकुलक, दोहा आदि मात्रिक छंद व मालती, दोधक आदि वर्णिक छंदों के लक्षण एवं उदाहरण तथा यमक, उपमा, श्लेष आदि अलंकारों के लक्षण एवं उदाहरण दिये गये हैं । जिससे पाठक सहज-सुचारु रूप से साहित्य में प्रयुक्त छन्द एवं अलंकारों के लक्षण एवं उदाहरणों को समझ सकते हैं व काव्य रचना में प्रयोग कर सकते हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004210
Book TitleApbhramsa Abhyas Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2008
Total Pages70
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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