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________________ 15. आरणाल छंद लक्षण- इसमें दो चरण होते हैं (द्विपदी)। प्रत्येक चरण में 30 मात्राएँ होती हैं। उदाहरणऽ ।।ऽ।ऽ । ऽऽ।ऽ। ।। ।। ।। 55 भो भुवणेक्कसीह वीसद्ध जीह तउ थाउ एह बुद्धी। ऽ। ।।।। ऽ।ऽ ।।। ऽ।ऽ ।।। ... ऽऽ अज्जु वि-विगय णाम णं समउ रामेणं कुणहि गम्पि संधी। पउमचरिउ 53.1.1 अर्थ- हे भुवनैकसिंह, विश्रब्धजीव! तुम्हारी यह क्या मति हो गई है? आज भी प्रसिद्धनाम राम के पास जाकर संधि कर लो। 16. लताकुसुम छंद लक्षण- इसमें दो चरण होते हैं (द्विपदी)। प्रत्येक चरण में 30 मात्राएँ होती हैं और चरण के अन्त में सगण (15) होता है। उदाहरण सगण ऽ। ।ऽ ।।।। । । । ।। 5 ।।5।।ऽ जत्थ सिरी अणुहुत्त तहिं पि कयं पुण भिक्खपवित्थरणं। सगण ऽ। । ऽऽ ।ऽ । । ।। ।।ऽ । ।।।। लोहु ण लजं भयं ण वि गारउ पेम्मसमं पि तवचरणं। सुदंसणचरिउ 11.2.3-4 अर्थ- जहाँ पर उन्होंने राज्यश्री का उपभोग किया था, वहीं पर अब भिक्षाचरण (48) • अपभ्रंश अभ्यास सौरभ (छंद एवं अलंकार) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004210
Book TitleApbhramsa Abhyas Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2008
Total Pages70
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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