SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 37
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अर्थ - बहुप्रहरों के बाद सूर्य अस्तमित हुआ, (मानो) बहुत प्रहारों से शूरवीर नाश को प्राप्त हुआ। अथवा क्या कहा जाय जो वारुणि (पश्चिम दिशा) से रक्त हुआ, वह वारुणि (मदिरा) में रतपुरुष के समान उग्र होकर भी कौन-कौन नष्ट नहीं होता। व्याख्या - उपर्युक्त पद्यांश में 'पहरेहि' व 'वारुणि' शब्द में श्लेष है क्योंकि इनमें दो अर्थ निहित हैं। अर्थालंकार 4. उपमा अलंकार - जहाँ उपमेय और उपमान में भेद होते हुए भी उपमेय के साथ उपमान के सादृश्य का वर्णन हो वहाँ उपमा अलंकार होता है अर्थात उपमेय और उपमान में समानता ध्वनित होती है। उपमा में चार तत्त्वों का होना आवश्यक है1. उपमेय 2. उपमान 3. समान धर्म और 4. वाचक शब्द (क) उपमेय - वर्ण्यविषय अर्थात् 'प्रस्तुत' उपमेय कहलाता है। जैसे - 'मुख चन्द्रमा के समान सुन्दर है'। - इस वाक्य में वर्ण्यविषय मुख है अतः मुख उपमेय कहा जायेगा। (ख) उपमान - उपमान को 'अप्रस्तुत' भी कहा जाता है। मुख चन्द्रमा के समान सुन्दर है - इस वाक्य में मुख को चन्द्रमा की उपमा दी गई है अतः चन्द्रमा उपमान कहा जाएगा। (ग) साधारण धर्म - वह गुण या क्रिया जो उपमेय और उपमान दोनों में विद्यमान हो। मुख चन्द्रमा के समान सुन्दर है - इस वाक्य में 'सुन्दर' साधारण धर्म है। (घ) वाचक शब्द - जो शब्द उपमेय और उपमान की समानता ध्वनित करे वह वाचक शब्द कहा जाता है। जैसे - समान, सरिस आदि। अपभ्रंश अभ्यास सौरभ (छंद एवं अलंकार) (30) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004210
Book TitleApbhramsa Abhyas Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2008
Total Pages70
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy