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________________ उदाहरण - हा-हा णाह सुदंसण सुंदर सोमसुह। सुअण सलोण सुलक्खण जिणमइअंगरुह। - सुदंसणचरिउ 8.41.1 अर्थ - हाय-हाय नाथ, सुदर्शन, सुन्दर, चन्द्रमा के समान सुखकारी, सुजन, सलोने, सुलक्षण जिनमति के पुत्र। व्याख्या - उपर्युक्त उदाहरण में 'स' वर्ण की बार-बार आवृत्ति हुई है। अतः यह अनुप्रास का उदाहरण है। 2. यमक अलंकार - जहाँ पद एक से हों किन्तु उनमें अर्थ भिन्न-भिन्न हो वहाँ यमक अलंकार होता है। उदाहरण सामिणो पियंकराए, सुंदरो पियंकराए। -वड्ढमाणचरिउ 2.3.2 अर्थ - रानी प्रियंकंरा से स्वामी के लिए प्रियकारी सुन्दर (पुत्र उत्पन्न हुआ)। व्याख्या - उपर्युक्त पद्यांश में 'पियंकराए' पद दो बार भिन्न-भिन्न अर्थों में आया है। एक स्थल पर तो उसका अर्थ प्रियकारी अर्थात मन, वचन एवं कार्य से प्रिय करनेवाला तथा दूसरा 'पियंकराए' पद उसकी रानी का नाम 'प्रियंकरा' बतलाता है। 3.श्लेष अलंकार - जब वाक्य में एक ही शब्द के दो या दो से अधिक अर्थ निकलें तो ऐसे अनेकार्थी शब्द में श्लेष अलंकार होता है। उदाहरणबहुपहरेहिँ सूरु अत्थमियउ अहवा काइँ सीसए। जो वारुणिहिं रत्तु सो उग्गु वि कवणु ण कवणु णासए। -- सुदंसणचरिउ 5.8 अपभ्रंश अभ्यास सौरभ · (छंद एवं अलंकार) (29) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004210
Book TitleApbhramsa Abhyas Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2008
Total Pages70
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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