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________________ 9. खंडयं छन्द लक्षण- इसमें चार चरण होते हैं (चतुष्पदी)। प्रत्येक चरण में तेरह मात्राएँ होती हैं और चरण के अन्त में रगण (SIS) रहता है। उदाहरण रगण रगण 11 ।। ऽ।। ऽ । ऽ ||| ।ऽ।। ऽ । ऽ पहु तउ दंसणकारणं, लहिवि वियप्पइ मे मणं । रगण रगण || ऽ ऽ । । ऽ । ऽ । ऽ । ऽ सहुँ तुम्हेंहिँ समुच्चयं, चिरभवि कहि मि परिच्चयं । जंबूसामिचरिउ 8.2.12. अर्थ - प्रभु आपके दर्शनों का हेतु प्राप्त कर मेरे मन में ऐसा विकल्प हुआ है कि आपके साथ कहीं पूर्वभव में विशिष्ट (प्रगाढ़ ) परिचय रहा। 10. मधुभार छन्द लक्षण- इसमें चार चरण होते हैं (चतुष्पदी) । प्रत्येक चरण में आठ मात्राएँ होती हैं। उदाहरण 111 ऽ ।। T I ऽ ।। तिहुवण रम्महुँ, तो वि ण धम्महुँ । ऽ।। ऽ।। ऽ । ऽ ।। लग्गहिँ मूढिउ, पाव परूढिउ । सुदंसणचरिउ 6.15.17-18 अर्थ - इतने पर भी वे मूढ़ पाप में फँसी हुई, त्रिभुवनरम्य धर्म में मन नहीं लगाती। (8) Jain Education International For Personal & Private Use Only अपभ्रंश अभ्यास सौरभ (छंद एवं अलंकार) www.jainelibrary.org
SR No.004210
Book TitleApbhramsa Abhyas Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2008
Total Pages70
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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