________________
अर्थ - जिनके केवलज्ञान में यह समस्त महान जगत हस्तामलकवत् दिखाई देता है, ऐसे सन्मति जिनेन्द्र के चरणारविंदों तथा शेष जिनेन्द्रों की भी वन्दना करके (नयनन्दि अपने मन में विचार करने लगे)।
2. सिंहावलोक छन्द
लक्षण- इसमें चार चरण होते हैं (चतुष्पदी)। प्रत्येक चरण में सोलह मात्राएँ होती हैं तथा चरण के अन्त में सगण (IIS) होता है।
उदाहरण -
सगण
S ।।।। ऽ।।।।। । ऽ
ऽ ।
। ऽ।। ऽ
।। ऽ।। जं अहिणव-कोमल कमल - करा, बलिमण्डऍ लेवि अणङ्गसरा ।
सगण
।। ऽ।
सगण सगण ।।।। ऽ ऽ।। ऽ।।। | || ।।ऽ स- विमाणु पवण-मण-गमण गउ', देवहुँ दाणवहु भि रणें अजउ' । पउमचरिउ 68.9.1-2
अर्थ - अभिनव, सुन्दर कोमल हाथों वाली अनंगसरा को वह विद्याधर ज़बर्दस्ती ले गया। पवन और मन के समान गतिवाले विमान में बैठा हुआ वह देवताओं और दानवों के लिए अजेय था ।
3. पादाकुलक छन्द'
लक्षण- इसमें चार चरण होते हैं (चतुष्पदी) । प्रत्येक चरण में सोलह मात्राएँ होती हैं और सर्वत्र लघु होता है।
उदाहरण
|| || | | | | ||||||||
...........................||
सुरण-विसहर- वर-खर - सरणु, कुसुम - सर - पहर-हर - समवसरणु ।
1. चरणान्त के 'उ' ह्रस्वस्वर को लघु होने पर भी छन्दानुरोध से दीर्घ माना गया है। २. अपवाद रूप में इस छन्द के अन्त में गुरु-गुरु व लघु-गुरु आदि भी पाये जाते हैं।
(4)
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
अपभ्रंश अभ्यास सौरभ
(छंद एवं अलंकार)
www.jainelibrary.org