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पर आरोहण करता है ये उसकी नैतिक और बौद्धिक तैयारी की संरचना करते हैं। इन्द्रियों के संयम से साधक बाह्य और आन्तरिक व्यवधान से मुक्त हो जाते हैं।
(6-8) धारणा, ध्यान और समाधि- ये तीनों एक विषय पर एकाग्रता की प्रक्रिया के सोपान हैं।321 योगी जो किसी एक का प्रयास करता है वह उसमें नहीं ठहर सकता, वह ध्यान या समाधि की
ओर सरक जाता है। इसी कारण से इन तीनों प्रक्रियाओं का सामान्य नाम है- संयम।322 धारणा किसी विषय पर मन को ठहराना है।323 ध्यान उसी विषय पर विचारों का अनवरत प्रवाह है।324 जब ध्यान में विषयी, विषय और ध्यान की प्रक्रिया के भेद समाप्त हो जाते हैं तो वह समाधि कहलाती है।325 ये समाधि दो प्रकार की होती है (1) संप्रज्ञात और असंप्रज्ञात या सबीज और निर्बीज या सालंबन और निरालंबन। जैनधर्म ध्यान और समाधि में भेद नहीं करता है। किन्तु यह इनको शुक्लध्यान के अन्दर सम्मिलित कर लेता है। संप्रज्ञात समाधि की तुलना पृथक्त्ववितर्क और एकत्ववितर्क शुक्लध्यान से की जा सकती है। असंप्रज्ञात समाधि की तुलना एकत्ववितर्क शुक्लध्यान की पूर्णता से की जा सकती है। जैनधर्म के अनुसार आत्मा यहाँ केवलज्ञान प्राप्त कर लेता है, यह सदेहमुक्ति है। विदेहमुक्ति सूक्ष्मक्रियाप्रतिपत्ति और व्युपरतक्रियानिवृत्ति शुक्लध्यान से प्राप्त की जा सकती है।
321. Yoga of the Saints, P. 87 322. योगसूत्र, 3/4 323. योगसूत्र, 3/1 324. योगसूत्र, 3/2 325. योगसूत्र और भाष्य, 3/3
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Ethical Doctrines in Jainism जैनधर्म में आचारशास्त्रीय सिद्धान्त
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