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बौद्ध दर्शन के अनुसार मोक्ष की दृष्टि को हम आगे समझायेंगे।
जैनदर्शन के अनुसार अनन्त ज्ञान, अनन्त आनन्द आदि की प्राप्ति मोक्ष में होती है। शरीर के रहते हुए मोक्ष की प्राप्ति के उदाहरण तीर्थंकर हैं। विदेहमुक्ति की अवस्था सिद्धत्व कहलाती है। विभिन्न दर्शनों में अविद्या की धारणा
हम यहाँ सांसारिक अवस्था के लिए उत्तरदायी सिद्धान्त पर विचार करेंगे। इस सिद्धान्त को अविद्या कहा जाता है जो भौतिकवादियों के अतिरिक्त सभी भारतीय दर्शन स्वीकार करते हैं। उसी कारण आत्मा जन्मों के चक्र में घूमता है और वही जीवन के आनन्ददायक पक्ष को ढक लेता है। यद्यपि अविद्या का कार्य वस्तुओं के वास्तविक स्वरूप पर पर्दा डालना माना गया है फिर भी उसका स्वरूप दर्शनों की तत्त्वमीमांसक स्थिति के अनुसार भिन्न-भिन्न माना गया है।
न्यायदर्शन के अनुसार मोह जिसको मिथ्याज्ञान कहा गया है (वह) सांसारिक जीवन का कारण है।277 यह राग और द्वेष को उत्पन्न करता है जो मन-वचन-काय की क्रिया का कारण होता है।278 यह प्रवृत्ति (संकल्पात्मक क्रिया) धर्म और अधर्म को उत्पन्न करती है जो एकत्रित हो जाती है जिसके फलस्वरूप अगले जन्म में नये शरीर का निर्माण होता है।279 यह जन्म दुःखपूर्ण होता है। मिथ्याज्ञान के स्वरूप के बारे में वात्स्यायन का कथन है- अनात्मा को आत्मा मानना। इस त्रुटिपूर्ण ज्ञान से मैं शरीर हूँ यह माना जाता है। इसके प्रभाव में आत्मा
277. न्यायसूत्र-भाष्य-वर्तिका, 4/1/3 278. न्यायसूत्र-भाष्य-वर्तिका, 4/1/6 279. न्यायसूत्र-भाष्य-वर्तिका, 3/2/60
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