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6.
बाधा के रूप में अविद्या ( 12 - 14 ), जाग्रत और सुप्त आत्माएँ (14-18), आध्यात्मिक जीवन के लिए गुरु की आवश्यकता ( 18 - 19 ), आध्यात्मिक जीवन के प्रेरक (19-22), श्रद्धा, ज्ञान और चारित्र का महत्त्व ( 23-27), चारित्र का निषेधात्मक पक्ष- पापों और कषायों का परिवर्जन ( 27-29), चारित्र का निषेधात्मक पक्ष - इन्द्रिय और मन का संयम ( 29-32), चारित्र का सकारात्मक पक्ष- सद्गुणों का विकास (32-36), चारित्र का सकारात्मक पक्ष - ध्यान ( 36-37), चारित्र का सकारात्मक पक्ष - भक्ति ( 37-38 ), योग या ध्यान का शारीरिक और आध्यात्मिक प्रभाव और प्रसाद का तत्त्व (39-40), पूर्णता प्राप्त रहस्यवादी की विशेषताएँ (40-45 ), विभिन्न दर्शनों में मोक्ष की धारणा ( 45-48 ), विभिन्न दर्शनों में अविद्या की धारणा ( 48-50 ), मोक्षप्राप्ति के साधन ( 50-52 ), योग का अष्टांग मार्ग ( 52-57), बुद्ध के चार आर्यसत्य (57-62)।
जैन और पाश्चात्य आचारशास्त्रीय सिद्धान्तों के प्रकार
63-75
पूर्व अध्याय का संक्षिप्त विवरण (63), आचारशास्त्रीय चिन्तन का पश्चिम में प्रारंभ ( 64 ) , समस्या और चिन्तन दृष्टि ( 64 ), आचारशास्त्रीय आदर्श की समस्यासोफिस्ट (64-66), सुकरात ( 66-67 ), सुकरात के पंथ ( 67-68 ), प्लटो और अरस्तु ( 68-70 ), बैन्थम
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(VI)
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