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________________ श्रद्धा, ज्ञान और चारित्र का महत्त्व मनुष्य को आत्मानुभव के मार्ग पर प्रेरणा देनेवाले प्रेरकों पर हमने विचार किया है। अब हम उस मार्ग पर विचार करेंगे जो हमें आत्मानुभूति की प्राप्ति कराने में सहयोगी होता है। दूसरे शब्दों में साधक को इस प्रकार का जीवन जीना अपेक्षित है जिससे नैतिक और आध्यात्मिक विकास की बाधाओं को जीता जा सके। आध्यात्मिक जीवन में विकास के लिए पहली आवश्यकता श्रद्धा है। कठोपनिषद् का कथन है कि मन, वाणी और चक्षुओं से ब्रह्म प्राप्त नहीं किया जा सकता। वह उस समय तक प्राप्त नहीं किया जा सकता है जब तक कोई यह नहीं कहता है कि 'वह है।126 जब तक वह उसके अस्तित्व को पूर्णतया मान नहीं लेता तब तक वह ईश्वर को प्राप्त नहीं कर सकता।127 प्रश्नोपनिषद् का कथन है कि आत्मा श्रद्धा, ज्ञान, तप और ब्रह्मचर्य से खोजी जा सकती है।128 अत: केवल श्रद्धा ही नहीं किन्तु ज्ञान और चारित्र भी मोक्ष के मार्ग का निर्माण करते हैं। गीता के अनुसार वह मनुष्य जिसको परम सत्य में श्रद्धा नहीं है वह जन्म-मरण के चक्र में ही घूमता है। वे व्यक्ति जिनको पूर्ण श्रद्धा है वे बंधन से मुक्त हो जाते हैं जब कि अश्रद्धावान संसार में भटकते हैं।130 केवल वे ही व्यक्ति जो श्रद्धावान हैं; ज्ञान में लीन हैं और जिन्होंने अपनी इन्द्रियों को जीत लिया है वे परम शान्ति प्राप्त करते हैं।131 126. कठोपनिषद्, 2/3/12 127. कठोपनिषद्, 2/3/13 128. प्रश्नोपनिषद्, 1/10 129. भगवद्गीता, 9/3 130. भगवद्गीता, 3/31, 4/40 131. भगवद्गीता, 4/39 Ethical Doctrines in Jainism जैनधर्म में आचारशास्त्रीय सिद्धान्त (23) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004208
Book TitleJain Dharm me Aachar Shastriya Siddhant Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year2011
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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