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द्वितीय, आवागमन आध्यात्मिक प्रेरक माना गया है। जब हम शरीर के रहते हुए आत्मा का अनुभव नहीं करते हैं तो हमें विभिन्न गतियों में गमन करना पड़ता है।11 केनोपनिषद् के अनुसार वह व्यक्ति जो शरीर के रहते हुए आत्मानुभव को प्राप्त नहीं कर सकता वह विनाश की ओर चला जाता है। 112 इसी तरह गीता कहती है कि जन्म-मरण के चक्र में वह व्यक्ति फँसा रहता है जो परम ज्ञान के प्रति श्रद्धा नहीं रखता है।13 वे व्यक्ति जिन्होंने आत्मानुभव कर लिया है इस क्षणभंगुर
और दुःखपूर्ण जन्म को प्राप्त नहीं करते हैं।114 अत: इस दुःखमय और अनित्य संसार में आकर व्यक्ति को आध्यात्मिक सत्य प्राप्त करने का प्रयत्न करना चाहिए।115
इस प्रेरक की तुलना जैनदर्शन के आवागमन के प्रेरक से की जा सकती है। आचारांग के अनुसार “जो व्यक्ति सांसारिक सुखों में आसक्त होते हैं वे बार-बार.जन्म लेते हैं"116 और “जो अज्ञान से तो मुक्त नहीं होते और मोक्ष की बात करते हैं वे जन्म-मरण के चक्र में घूमते हैं।"117 उत्तराध्ययन में कहा गया है कि मृगापुत्र के पिता उसके संन्यास ग्रहण करने को निरुत्साहित करते हैं।18 तो मृगापुत्र कहता है कि
111. कठोपनिषद्, 2/3/4 112. केनोपनिषद्, 2/5,
बृहदारण्यकोपनिषद्, 4/4/14 113. भगवद्गीता, 9/2, 3 114. भगवद्गीता, 8/15 115. भगवद्गीता, 9/33 116. आचारांग, 1/4/1 पृष्ठ 36 117. आचारांग, 1/5/1 पृष्ठ 43 118. उत्तराध्ययन, 19/24-42
Ethical Doctrines in Jainism जैनधर्म में आचारशास्त्रीय सिद्धान्त
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