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सूक्ष्म है, अविनाशी और समस्त प्राणियों का परम कारण है। यह ब्रह्म का बौद्धिक ज्ञान नहीं है किन्तु उसका अन्तर्दृष्ट्यात्मक ज्ञान है। अपरा विद्या का संबंध निम्न कोटि के ज्ञान से है जिसके अन्तर्गत शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छन्द, ज्योतिष आदि का ज्ञान सम्मिलित है।
___ परा विद्या उच्चतम आदर्श है जिसकी पुष्टि नारद और सनत्कुमार का वार्तालाप जो छान्दोग्योपनिषद् में दिया गया है उससे होती है जिसमें कहा गया है कि विविध विषयों जैसे इतिहास, गणित, तर्कशास्त्र आदि का ज्ञान प्राप्त करते हुए भी नारद शोक को जीतने में असमर्थ है क्योंकि उसको आत्मा का ज्ञान नहीं है। इस प्रकार हम समझते हैं कि आत्मा का अन्तर्दृष्ट्यात्मक ज्ञान ही दुःख के सागर से हमको पार कराने में समर्थ है, केवल बौद्धिक ज्ञान नहीं। अतः परा विद्या उच्चतम अनुभव है और उदात्त आदर्श है। यहाँ यह समझना चाहिए कि बौद्धिक ज्ञान को पूर्णतया निन्दित नहीं किया जाना चाहिए किन्तु इसको अन्तर्दृष्ट्यात्मक ज्ञान से अधिक महत्त्व नहीं दिया जाना चाहिए। जब उच्चतम आदर्श की प्राप्ति हो जाती है तो अन्तर्दृष्ट्यात्मक ज्ञान बौद्धिक ज्ञान का स्थान ले लेता है।
हम इन सब बातों की समानता जैनदर्शन में वहाँ देखते हैं जहाँ कुन्दकुन्द कहते हैं कि शुद्धनय (निश्चयनय) सत्य है और व्यवहारनय असत्य है।” शुद्धनय आत्मा का अन्तर्दृष्ट्यात्मक ज्ञान है व्यवहारनय आत्मा के एकत्व में भेद उत्पन्न करता है। वे साधक जो रहस्यात्मक
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मुण्डकोपनिषद्, 1/1/5, 6 व शंकर की टीका सहित मुण्डकोपनिषद्, 1/1/5 छान्दोग्योपनिषद्, 7/1/2, 3 समयसार, 11
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