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________________ गंध, शब्द, रस और स्पर्श रहित है और जन्म-मरण आदि से परे है। कुन्दकुन्द के भावपाहुड का कथन है कि सर्वोच्च आत्मा रूप, गंध, शब्द, रस और स्पर्श रहित है और चेतना इसका गुण है, किसी भी चिह्न से नहीं पहचानी जा सकती है और उसका आकार अपरिभाषित है।21 इतनी समानता होते हुए भी परमात्मा के स्वरूप में जो भेद है उसकी उपेक्षा नहीं की जा सकती। यहाँ यह समझना चाहिए कि जैनदर्शन के तात्त्विक दृष्टिकोण के कारण यह विश्व का आधार नहीं हो सकता। आत्मा का तात्त्विक बहुवाद जो जैनदर्शन में बताया गया है उसके अनुसार प्रत्येक आत्मा अन्तःशक्ति की अपेक्षा ब्रह्म या परमात्मा है। तृतीय, आनन्द की प्राप्ति साधने योग्य लक्ष्य है। ब्रह्म का आनन्द शांति और शाश्वतता की परिपूर्णता है।22 तैत्तिरीयोपनिषद् ब्रह्मानन्द की तुलना शारीरिक आनन्द से करता है और मनुष्यों, देवताओं आदि के आनन्दों की संख्या जोड़ने के पश्चात् निर्णय करता है कि प्रजापति के सौ आनन्द ब्रह्मानन्द का निर्माण करते हैं। यहाँ यह बताया जा सकता है कि आध्यात्मिक आनन्द अनूठा होता है और किसी भी शारीरिक आनन्द के साथ उसकी तुलना नहीं की जा सकती। कुन्दकुन्द के अनुसार उच्चतम आनन्द उपमा से परे होता है।24 योगीन्दु का कथन है कि उच्चतम आनन्द की प्राप्ति जो परमात्मा 20. परमात्मप्रकाश, 1/17, 19 21. भावपाहुंड, 64 प्रवचनसार, 2/80 पञ्चास्तिकाय, 127 तैत्तिरीयोपनिषद्, 1/6 तैत्तिरीयोपनिषद्, 2/8 24. प्रवचनसार, 1/13 22. Ethical Doctrines in Jainism जैनधर्म में आचारशास्त्रीय सिद्धान्त (5) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004208
Book TitleJain Dharm me Aachar Shastriya Siddhant Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year2011
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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