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उससे पतन (3) शुद्धीकरण (4) ज्योतिपूर्ण अवस्था (5) ज्योति के पश्चात् अंधकार काल और (6) लोकातीत जीवन।
तृतीय खण्ड की महत्त्वपूर्ण बातें इस प्रकार हैं
प्रथम, प्रेय मार्ग और श्रेय मार्ग में भेद करने के पश्चात् विवेकी श्रेय मार्ग को चुनता है जिसके कारण जीवन का वास्तविक उद्देश्य प्राप्त किया जाता है। यह श्रेय मार्ग मनुष्य को क्षणभंगुर सांसारिक वस्तुओं से
और दुःखों से मुक्त कर देता है। परा विद्या या अपरा विद्या के सन्दर्भ में कहा जा सकता है कि शुद्धनय (निश्चयनय) अन्तर्दृष्ट्यात्मक अनुभव है जो परा विद्या के अनुरूप है और व्यवहारनय बौद्धिक ज्ञान है जो अपरा विद्या के अनुरूप है। कर्मयोगी सक्रियता के जीवन में कर्मों को अनासक्ति भाव से सम्पन्न करता है। निष्काम कर्म आध्यात्मिक रूप से प्रकाशित जीवन का स्वाभाविक परिणाम है। तीर्थंकर जीवन में सक्रियता के उदाहरण है। वे सभी कर्मों को अनासक्त भाव से करते हैं। सुप्त-आत्मा इन्द्रियों के द्वारा बाह्य पदार्थों में संलग्न रहता है किन्तु जाग्रत-आत्मा इन्द्रियों को अन्दर की ओर मोड़ता है और आत्मा को देखता है। शुद्ध अन्त:करण वाला व्यक्ति ध्यान से ही परमात्मा का अनुभव कर पाता है। नैतिक अनुशासन और तपों का पालन करते हुए तथा आगमों का विस्तृत अध्ययन होते हुए भी आध्यात्मिक जीवन में सफलता ध्यान के बिना प्राप्त नहीं की जा सकती है।
द्वितीय, पश्चिम में सोफिस्ट आचारशास्त्रीय विज्ञान के जनक कहे जा सकते हैं। सोफिस्टिक आन्दोलन ने मनुष्य के विचारों को जगाया और दर्शन, धर्म आदि को चुनौती दी और बुद्धि को इनके लिए महत्त्वपूर्ण माना। सुकरात के अनुसार ज्ञान उच्चतम शुभ है किन्तु कषायों
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