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________________ - मुनि पाँच महाव्रत (अहिंसा, सत्य, अस्तेय, अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य), पाँच प्रकार की समिति (ईर्या, भाषा, एषणा, आदाननिक्षेपण और उत्सर्ग), तीन गुप्ति (मन, वचन और काय), छह प्रकार के आवश्यकों (सामायिक, स्तुति, वंदना, प्रतिक्रमण, प्रत्याख्यान और कायोत्सर्ग) का पालन करते हैं। इसके अतिरिक्त वह पाँच इन्द्रियों का नियंत्रण, केशलोंच, दिन में केवल एक बार भोजन करता है, स्नान नहीं करता और दंत धावन नहीं करता है। नग्नता, जमीन पर सोना, हथेली में खड़े होकर दिन में एक बार आहार ग्रहण करना- दिगम्बर साधुओं की विशिष्ट चर्या है। इस प्रकार मुनि अपनी सम्पूर्ण ऊर्जा कर्मों को रोकने (संवर) और विनाश (निर्जरा) में समर्पित करता है। परिणामस्वरूप वह बाईस प्रकार के परीषहों को जीतना और बारह प्रकार के तपों को करना अपनी अनिवार्यताओं के क्षेत्र में स्वीकार करता है। परीषह मुनि की इच्छा के विरुद्ध उत्पन्न होते हैं, जब कि तप साधक की इच्छा के अनुरूप आध्यात्मिक विकास के लिए किये जाते हैं। इन तपों को करने का उद्देश्य शारीरिक त्याग ही नहीं है किन्तु इन्द्रियों और शरीर के प्रति आसक्ति को नष्ट करना है। छह प्रकार के अंतरंग तपों में ध्यान का अत्यधिक महत्त्व है। सभी अनुशासनात्मक क्रियाएँ ध्यान की पृष्ठभूमि का निर्माण करती हैं। वह सम्यक्चारित्र का अनिवार्य संघटक है और यह दिव्य अन्तःशक्तियों के प्रकटीकरण के लिए सीधे रूप से संबंधित है मोटे तौर पर ध्यान दो प्रकार का होता है अर्थात् (1) प्रशस्त और (2) अप्रशस्त। पूर्ववर्ती के अन्तर्गत दो प्रकार का ध्यान है अर्थात् (i) धर्मध्यान और (ii) शुक्लध्यान, और परवर्ती में भी दो प्रकार के Ethical Doctrines in Jainism Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004208
Book TitleJain Dharm me Aachar Shastriya Siddhant Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year2011
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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